बालेन्दु शर्मा दाधीच पुराने
तौर-तरीकों को ध्वस्त करने के लिए बनी ब्लॉकचेन तकनीक। यह पुरानी
कार्यप्रणालियों का विकल्प है और बैंकिंग व्यवस्था पर संस्थागत एकाधिकार को
चुनौती देती है। अब तक हम अपना लेन-देन वित्तीय संस्थानों के जरिए करते आए
हैं, लेकिन अब उसी तरह का लेन-देन बिना बैंक जाए ब्लॉकचेन के जरिए भी किया
जा सकता हैबिटकॉइन नामक डिजिटल क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन की व्यवस्था के रूप में हुआ ब्लॉकचेन का विकास
जब एक बिटकॉइन
की कीमत लाखों रुपयों तक पहुंच गई तो आम लोगों के मन में भी
‘क्रिप्टोकरेन्सी’ के बारे में दिलचस्पी पैदा हो गई। आखिर ऐसा क्या है इस
मुद्रा में जो मुद्रा है ही नहीं लेकिन उसकी कीमत लाखों में है? सवाल जायज
है। लेकिन इसका उत्तर पाने से पहले उस मूलभूत अवधारणा को समझना होगा, जिसने
क्रिप्टोकरेन्सी को संभव बनाया। और वह मूलभूत अवधारणा है-‘ब्लॉकचेन’।
दरअसल
ब्लॉकचेन सूचनाओं को सुरक्षित और प्रामाणिक बनाए रखने का ठोस जरिया बनकर
उभरी है। वास्तव में इसकी उपयोगिता धन के लेन-देन या इस लेन-देन की सूचनाओं
को सहेजने तथा साझा करने तक सीमित नहीं है। यह जीवन के हर उस क्षेत्र में
भूमिका निभा सकती है जिसमें सूचनाओं या डाटा की कोई अहमियत है। मिसाल के
तौर पर सुरक्षित पहुंच, पहचान का प्रमाणन, गोपनीयता, शिक्षा, मीडिया,
वित्तीय सेवाएं, संपत्तियों का लेन-देन, इंटरनेट आॅफ थिंग्स, रोजगार,
सरकारी सेवाएं आदि-आदि।
सैद्धांतिक रूप से ब्लॉकचेन एक सार्वजनिक
(डिजिटल) खाताबही (लेजर) है जो अनगिनत लेन-देन का समय-वार क्रम में
लेखा-जोखा रखती है। कल्पना कीजिए कि इस खाताबही की प्रतियां सैकड़ों-हजारों
लोगों के पास मौजूद हैं और वे सभी अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं। अब ऐसी
व्यवस्था कर दी गई है कि ये खाताबहियां हमेशा एक-दूसरे की सत्य प्रतिलिपि
बनी रहती हैं। किसी एक खाताबही में कोई नई टिप्पणी हुई तो तमाम दूसरी
खाताबहियां भी अपडेट हो गर्इं। आप कहेंगे कि ऐसा कैसे संभव है। पुरानी
खाताबहियों के साथ तो ऐसा संभव नहीं है लेकिन डिजिटल दुनिया में यह संभव
है। कल्पना कीजिए कि ये खाताबहियां असल में कंप्यूटरों में रखी हुई फाइलें
हैं और तमाम कम्प्यूटर इंटरनेट के जरिए जुड़े हुए हैं। तब तो ऐसा संभव हो
जाएगा ना कि एक दूसरे से अलग रखी हुई तमाम फाइलें हमेशा अपडेट होती रहें।
ज्यादा से ज्यादा हमें एक सॉफ्टवेयर की जरूरत होगी जो इन सबको अपडेट करता
रहे।
ब्लॉकचेन में इसी परिकल्पना को साकार किया गया है। जैसा कि नाम से
ही जाहिर है, यह सूचनाओं के ब्लॉक्स (समूहों) की एक शृंखला (चेन) है जिसकी
प्रतियां अनगिनत स्थानों पर सहेजी जाती हैं। मतलब दुनियाभर में फैले ऐसे
अनगिनत लोगों के कंप्यूटरों पर, जो ब्लॉकचेन की इस विश्व-स्तरीय प्रणाली
में प्रतिभागिता करते हैं। ये आपके और हमारे जैसे ही लोग हैं। उनमें से कुछ
तकनीकी पृष्ठभूमि रखते हैं तो कुछ जीवन के दूसरे हिस्सों से आते हैं।
लेकिन बस इतना समझ लीजिए कि उन्होंने अपने कंप्यूटरों का एक हिस्सा इस काम
के लिए दे रखा है। ब्लॉकचेन की वैश्विक व्यवस्था के तहत उनके कंप्यूटरों को
एक्सेस किया जाता है और उनमें रखी हुई सूचनाएं लगातार अपडेट होती रहती
हैं।
आप कुछ भ्रमित हो रहे होंगे कि भला सूचनाओं को अनगिनत स्थानों पर
सहेजने की क्या जरूरत पड़ गई? बड़े से बड़े बैंक भी अपनी सूचनाओं को केंद्रीय
डाटाबेस में जमा करते हैं और वे तमाम शाखाओं को उपलब्ध हो जाती हैं। तो
यहां पर इतनी जटिल व्यवस्था की क्या आवश्यकता पड़ी?
इस बात का जवाब यह है
कि ब्लॉकचेन पुराने तौर-तरीकों को ध्वस्त करने के लिए ही बनी है। यह
पुरानी कार्यप्रणालियों का विकल्प है और बैंकिंग की व्यवस्था पर संस्थागत
एकाधिकार को चुनौती देती है। अब तक हम अपना लेन-देन वित्तीय संस्थानों के
जरिए करते आए हैं। लेकिन अब उसी तरह का लेन-देन ब्लॉकचेन के जरिए भी किया
जा सकता है, जिसमें न तो बैंकों की कोई भूमिका है, न सरकारों की और न ही
लेन-देन की प्रक्रिया में कोई शुल्क चुकाने की जरूरत है। पारंपरिक बैंकिंग
प्रणालियों के लिए यह खतरे की घंटी हो सकती है। हालांकि इसकी विशेषताएं ऐसी
हैं कि बहुत सारे बैंक खुद ब्लॉकचेन की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
आइए,
वित्तीय लेन-देन की वर्तमान व्यवस्था के साथ इसकी तुलना करके देखें। आज के
समय में, नकद लेन-देन के अतिरिक्त, जब आप किसी व्यक्ति को पैसा भेजते हैं
या किसी से पैसा मंगवाते हैं तो बीच में बैंक की भूमिका होती है। और वह
भूमिका मूल रूप से यह है कि बैंक यह हिसाब रखता है कि किन व्यक्तियों के
बीच, कब और कैसा लेन-देन हुआ। बैंक यहां पर सारी प्रक्रिया को संपन्न
करवाने के साथ-साथ एक गारंटर या प्रमाणनकर्ता की भूमिका भी निभाता है। यदि
यही काम बैंकों को बीच में लाए बिना ही होने लगे तो? ब्लॉकचेन में यही होता
है। दो लोगों के बीच डिजिटल करेन्सी में लेन-देन होता है और उसका ब्योरा
दुनिया भर में फैले हुए लोगों के कंप्यूटरों में सुरक्षित रखा जाता है।
लेन-देन की सूचना के साथ-साथ उसके घटित होने के समय, स्थान तथा दूसरे विवरण
भी टाइमस्टांप के रूप में इन सभी स्थानों पर मौजूद रहते हैं। तो बस, अब
बैंकों की जरूरत कहां पड़ी? लोगों ने आपस में ही लेन-देन कर लिया और बात
खत्म। हां, एक विकल्प मौजूद है जो इस बात की तस्दीक करता है कि कब, कैसे और
कितना लेन-देन हुआ।
ब्लॉकचेन
तकनीक का आविष्कार 2008 में सातोशी नाकामोतो नामक शख़्स ने किया था जिसकी
पहचान आज तक गोपनीय है। बहुत संभव है कि यह एक छद्म नाम हो। सातोशी ने
बिटकॉइन नामक डिजिटलक्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन की व्यवस्था के रूप में
ब्लॉकचेन का विकास किया था। बिटकॉइन दुनिया की पहली डिजिटल करेंसी बनी जो
किसी भी रूप में बैंकिंग प्रणाली पर निर्भर नहीं थी
तुरंत एक सवाल हमारे मन में कौंधता है कि इसकी
क्या गारंटी है? लेने वाला मुकर जाए या फिर देने वाला धनराशि लेकर मुकर जाए
तो फिर क्या होगा? या फिर जिन कंप्यूटरों पर यह जानकारी सहेजी गई है,
उन्हें कोई हैक कर ले तो क्या होगा?
इस सवाल का जवाब ब्लॉकचेन की
अवधारणा में ही निहित है। कोई भी व्यक्ति मुकर नहीं सकता क्योंकि जानकारी
अनगिनत कंप्यूटरों में टाइमस्टांप के साथ दर्ज है। सूचनाओं की सुरक्षा की
भी पुख्ता गारंटी है क्योंकि कोई हैकर दो-चार या दस-बीस कंप्यूटरों को तो
हैक कर सकता है, ब्लॉकचेन का हिस्सा बने लाखों कंप्यूटरों को हैक नहीं कर
सकता। अगर किसी कंप्यूटर में रखी सूचनाएं खतरे में हैं तो कोई फर्क नहीं
पड़ता, क्योंकि लाखों दूसरे कंप्यूटरों में मौजूद सूचनाएं सुरक्षित हैं
जिनसे उस लेन-देन की तस्दीक होती है।
हालांकि यह उदाहरण वित्तीय
लेन-देन से संबंधित है लेकिन जैसा मैंने पहले जिक्र किया है, यह प्रणाली
किसी भी तरह की सूचनाओं के संबंध में प्रासंगिक है।
ब्लॉकचेन के कुछ
बुनियादी गुण हैं, जैसे सूचनाओं को एनक्रिप्ट (कूट संकेतों में बदलकर) करके
सहेजा जाना, उनके साथ छेड़छाड़ का असंभव हो जाना, प्रामाणिक परिस्थितियों
में डाटा की निर्बाध उपलब्धता, पारदर्शिता, उनकी पुष्टि किए जाने की
व्यवस्था आदि। यह पियर-टू-पियर नेटवर्क का प्रयोग करती है, यानी खुद
प्रयोक्ताओं (यूजर्स) के कंप्यूटरों का और किसी केंद्रीय सर्वर पर आधारित
नहीं है। ऐसे में किसी एक सर्वर, किसी एक कंपनी, किसी एक इमारत, किसी एक
शहर, किसी एक राज्य और यहां तक कि किसी एक देश में डाटा के नष्ट हो जाने की
स्थिति में भी सूचनाएं नष्ट नहीं होतीं।
ब्लॉकचेन तकनीक का आविष्कार
2008 में सातोशी नाकामोतो नामक शख़्स ने किया था जिसकी पहचान आज तक गोपनीय
है। बहुत संभव है कि यह एक छद्म नाम हो। सातोशी ने बिटकॉइन नामक डिजिटल
क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन की व्यवस्था के रूप में ब्लॉकचेन का विकास किया
था। बिटकॉइन दुनिया की पहली डिजिटल करेंसी बनी जो किसी भी रूप में बैंकिंग
प्रणाली पर निर्भर नहीं थी। इसमें न तो रिजर्व बैंक जैसे किसी नियामक
संस्थान की ही कोई भूमिका थी और न ही बैंकों की। न इसमें किसी क्रेडिट या
डेबिट कार्ड की जरूरत थी और न ही एटीएम या पारंपरिक डिजिटल भुगतान
प्रणालियों की। ब्लॉकचेन और क्रिप्टोकरेन्सी की अवधारणा को अगले अंक में हम
और गहराई से समझने की कोशिश करेंगे।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)