मुख्यमंत्री बनने के बाद 2013 में हेमंत सोरेन ने मुंबई के 'ताज लैंड्स एंड होटल' में आरफा (परिवर्तित नाम ) नामक एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया था। उसने बांद्रा मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को शिकायत दी। बाद में शिकायत को वापस ले लिया। इस साल फिर से लड़की ने इस मामले की शिकायत की है। लड़की इसी साल 8 अगस्त को सड़क दुर्घटना का शिकार हुई थी, जिसे वह उसकी जान लेने का प्रयास बता रही है। इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने सोरेन को नोटिस भी जारी कर दिया है।

बलात्कार पीड़िता आरफा (परिवर्तित नाम) झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
15 जुलाई, 2013 को हेमंत सोरेन पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे। उनका वह कार्यकाल तो विवादों में घिरा ही था लेकिन इस कार्यकाल में उनके कई सियासी फैसलों ने उन्हें सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है। बात सिर्फ सियासी फैसलों की नहीं है, बात उनके चरित्र को लेकर भी उठी है। उनके दामन पर ऐसा दाग लगा है जिसे धोए बिना वे कुर्सी पर बैठे रहने का नैतिक अधिकार कायम नहीं रख सकते।
यह मुद्दा तबका है जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। कुर्सी मिलने का जश्न मनाने के लिए वे मित्रों के साथ मुंबई के पांच सितारा होटल में गए थे। उनके साथ मुंबई निवासी सुरेश नागरे भी थे। वे 'ताज लैंड्स एंड होटल' में रुके थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 5 सितंबर 2013 की रात होटल में एक जश्न होता है। इस दौरान आरफा (परिवर्तित नाम) नामक युवती से बलात्कार किया जाता है। बलात्कार का आरोप झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगता है। गौरतलब है कि यह बात हम नहीं कह रहे हैं, यह बात कहती है बलात्कार पीड़िता आरफा की शिकायत जो उसने बांद्रा मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के यहां दर्ज की थी।
यह है पूरा मामला
आरफा की शिकायत के अनुसार वह हेमंत सोरेन के मित्र सुरेश नागरे को पहले से जानती थी। नागरे ने उसे फिल्मों में काम दिलवाने का झांसा दिया था और इसी झांसे में उसकी मुलाकात हेमंत सोरेन से करवाई
गई थी।

अगस्त
में आरफा की कार दुर्घटनाग्रस्त हुई थी। जिसमें वह जख्मी हो गई थी। उसे शक
है कि यह हादसा नहीं बल्कि उसे जान से मारने के लिए किया गया प्रयास था।
घटना की रात, होटल की 21वीं मंजिल पर एक कमरा बुक था। जहां ठहरे हुए थे नए—नए बने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन। आरफा ने अपनी शिकायत में कहा है कि नागरे ने उसे उस रात वहां बुलाया। रात करीब 10 बजे वह वहां पहुंची। आरफा ने देखा, कमरे में तीन अन्य लोग थे। नागरे ने आरफा का हेमंत सोरेन से परिचय कराया और कहा कि यह बड़े और ताकतवर व्यक्ति हैं और कई लोगों को बॉलीवुड में जानते हैं और फिल्मों में ‘लीड रोल’ दिलवाने में उसकी मदद करेंगे। इसके बाद सभी ने खाना खाया और बाकी तीनों लोग वहां से चले गए। कमरे में बचे तो बस सुरेश नागरे, हेमंत सोरेन और आरफा।
कुछ देर बाद, नागरे यह कहकर बाहर निकल गया कि उसे कुछ काम है और वह 15 मिनट में किसी से मिलकर वापस आएगा। उधर आरफा असहज महसूस कर रही थी। इस बीच उसने कई बार नागरे को फोन किया लेकिन उसने फोन नहीं उठाया।
इसके बाद, शिकायत के अनुसार सोरेन ने सारी मयार्दाएं तोड़ दीं। आरफा की मानें तो, सोरेन ने उसका यौन उत्पीड़न किया। जब उसने चिल्लाने का प्रयास किया तो सोरेन ने उसका मुंह दबा दिया और धमकी दी कि यदि वह फिर चिल्लाई तो उसे 21वीं मंजिल से नीचे फेंक दिया जाएगा। डरी, सहमी आरफा चिल्ला तक न सकी। उसे लग रहा था कि कहीं सोरेन उसे वास्तव में मार न डालें। आरफा का कहना है कि थोड़ी देर पहले तक बेहद सभ्य दिखाई दे रहे हेमंत का रवैया सड़क छाप गुंडे की तरह था, जिसने उसके साथ वीभत्स तरीके से दुष्कर्म किया।
सुबह साढ़े तीन बजे तक आरफा वहां कैद रही। साढ़े तीन बजे के करीब एक अन्य लड़की वहां आई। उसने भी उसे कहा कि वह यहां से चली जाए और साथ ही धमकी दी कि यदि उसने इस घटना के बारे में किसी से जिक्र किया तो वह उसके जीवन का अंतिम दिन होगा। हां, यदि वह चुप रही तो सोरेन उसे फिल्मों में काम दिलवाने में मदद करेंगे।
उस दिन के बाद से नागरे ने आरफा का फोन उठाना बंद कर दिया। वह मानसिक तौर पर पूरी तरह टूट चुकी थी। अक्तूबर के पहले सप्ताह में आरफा के पास नागरे का दोबारा फोन आया। उसने 7 अक्तूबर, 2013 को उसे हेमंत सोरेन से मिलने के लिए झारखंड आने के लिए कहा। आरफा समझ गई कि उसके साथ फिर से ऐसा होने वाला है। उसने नागरे का फोन उठाना बंद कर दिया, लेकिन वह लगातार उसे एसएमएस और फोन करके झारखंड आने के लिए दबाव बनाता रहा।
इसके बाद आरफा ने अपनी अंतरआत्मा की आवाज सुनी और फैसला किया कि वह उसके साथ हुए बलात्कार के संबंध में शिकायत देगी। आरफा ने बांद्रा मेट्रोपोलेटियन मजिस्ट्रेट के यहां धारा 376, 365,354,323, 120 बी के तहत शिकायत की। तारीख थी 21 अक्तूबर 2013। यानी आरफा के साथ दुष्कर्म होने के 46वें दिन। आरफा ने अपनी शिकायत में देरी का कारण यह बताया है कि उसने डर के कारण पहले शिकायत नहीं की थी। क्योंकि आरोपी राजनीतिक रसूख वाले और प्रभावी लोग थे। इसके चलते उसने पुलिस से भी सीधे शिकायत नहीं की। उसने अपनी शिकायत में हेमंत सोरेन को मुख्य अभियुक्त और सुरेश नागरे को सहअभियुक्त बनाया।
आश्चर्यजनक तो यह कि उसके बाद अचानक 30 अक्तूबर को आरफा ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को लिखित में कहा कि उसकी शादी होने वाली है और वह केस को आगे नहीं ले जाना चाहती, क्योंकि उसे आवास बदलना पड़ेगा।
अब जरा इन तारीखों पर गौर करें, आरफा के साथ 5 सितंबर को बलात्कार हुआ, 21 अक्तूबर को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के यहां शिकायत की गई और 22 अक्तूबर को शिकायत मजिस्ट्रेट कोर्ट में पंजीकृत हुई। 25 नवंबर को सुनवाई की तारीख पड़ती उससे पहले अचानक 30 अक्तूबर को 25 दिन पहले ही केस को आगे न चलाए जाने की बात लिखकर मजिस्ट्रेट को दी गई। उधर मजिस्ट्रेट ने इस पर लिखा कि 'कंटेस्टिड केस विड्रान' यानी शिकायतकर्ता मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती, और फाइल बंद हो गई। उधर आरफा भी दृश्य से गायब हो गई।
आरफा
ने जो शिकायत प्रधानमंत्री और गृहमंत्रालय को भेजी उसका ईमेल झारखंड के
एक बड़े नेता को भी किया, यह उसका स्क्रीन शॉट है, पीड़िता का असली नाम छिपा
रहे इसलिए नाम धुंधला कर दिया है।
जवाब मांगते सवालसवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट को क्या करना चाहिए था, क्या उन्हें लड़की की बात मान लेनी चाहिए थी, क्योंकि उसने पहले दुष्कर्म का आरोप लगाया, फिर लिखकर दिया कि उसकी शादी होने के कारण वह केस को आगे नहीं ले जाना चाहती। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आरपी लूथरा कहते हैं कि दोनों ही सूरतों में, जब मजिस्ट्रेट के पास शिकायत आई तो सबसे पहले तो उन्हें मामले की जांच के लिए पुलिस को निर्देश देना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यदि लड़की ने किसी कारण यह लिखकर भी दे दिया था कि वह केस को आगे नहीं बढ़ाना चाहती तो वह ऐसा क्यों नहीं करना चाहती थी इसकी भी जांच पुलिस द्वारा ही की जानी चाहिए थी। दरअसल किसी भी स्थिति में पुलिस या अन्य जांच एजेंसी ही मामलों की जांच कर तथ्य एकत्रित करती है, इसके बाद तमाम तथ्यों को न्यायालय के समक्ष रखा जाता है, जिनके आधार पर सुनवाई होती है, उन्हें देखा-परखा जाता है, गवाही होती है। इसके बाद ही न्यायालय किसी निर्णय पर पहुंचकर फैसला सुनाता है।
किसी भी मामले में केवल पीड़ित के यह लिख देने भर से कि वह केस को आगे नहीं बढ़ाना चाहता, केस खत्म नहीं हो जाता। यदि किसी मामले में समझौता भी होता है तो ऐसा उच्च न्यायालय में ही संभव होता है, क्योंकि उच्च न्यायालय को ही यह अधिकार है कि वह दोनों पक्षों में समझौते की बात पर सहमति दे सके।
गौरतलब है कि हत्या और दुष्कर्म के मामले में ऐसा होना असंभव है। और यहां तो मामला दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध का है। आरोपी हैं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन। शिकायत में स्पष्ट लिखा है कि दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति का नाम हेमंत सोरेन, दुष्कर्म करने वाले का पता, मुख्यमंत्री आवास, झारखंड। सवाल यह है कि किस कारणवश लड़की ने ऐसा किया? यदि उस पर दबाव बनाया गया तो दबाव किसने डाला?
अजीब बात है कि इतने गंभीर आरोप के बाद भी मामले की जांच कराने की जरूरत नहीं समझी गई। पुलिस को जांच के लिए शिकायत ही नहीं भेजी गई, आखिर क्यों?