
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास पूजन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
दुनिया
2020 को कोरोना महामारी के लिए याद रखेगी, लेकिन भारत के लिए इसके अलावा
और भी वजहें हैं जो 21वीं सदी के 20वें साल को खास बनाती हैं। इन घटनाओं ने
भारत के स्वाभिमान को प्रखर किया, भारत की सांस्कृतिक व आधुनिक पहचान को
एक पग आगे स्थापित किया।
5 अगस्त, 2020 को देश के प्रधानमंत्री के
हाथों राम मंदिर का भूमिपूजन हुआ। हिंदू समाज की 5 शताब्दी पुरानी पीड़ा पर
मरहम लगा। श्रीराम जन्मभूमि के लिए 500 साल में हुए लाखों बलिदान सार्थक
हुए। इसी के साथ शुरू हुआ नया अध्याय। पूजन में दी गई आहुतियों के साथ भारत
के मन को जकड़े बैठी उपनिवेशवादी मानसिकता के उन्मूलन के वैचारिक यज्ञ की
अग्नि भी प्रज्ज्वलित हो उठी। पूरे देश ने महसूस किया कि यह सिर्फ एक मंदिर
निर्माण का प्रश्न नहीं था, केवल भूमि के एक टुकड़े को हासिल करने की लड़ाई
नहीं थी। यह इतिहास में अपना जन्मसिद्ध स्थान हासिल करने व भविष्य के लिए
एक प्रकाश स्तम्भ स्थापित करने का संघर्ष था। भूमिपूजन के साथ इतिहास के
नाम पर किए गए छल-कपट का मकड़जाल भी भस्म हो गया। भारत को उसकी पहचान पर
शर्मिंदा होने की सीख देने वाला शिक्षा शास्त्र और हजारों वर्षों के हिंदू
स्वाभिमान पर डाले गए पर्दे तार-तार हो गए।
श्रीराम जन्मभूमि पर 16
अक्तूबर, 2019 को अदालत का फैसला आया। 5 फरवरी, 2020 को श्रीराम जन्मभूमि
तीर्थ क्षेत्र न्यास का गठन हुआ और 5 अगस्त को कोरोना से लड़ते देश ने
दुनिया को दिखाया कि हम संकटकाल में भी अपने सांस्कृतिक गौरव के
पुनर्निर्माण का कार्य प्रारंभ करने का माद्दा रखते हैं। राम मंदिर
भूमिपूजन से एक वर्ष पहले कश्मीर से विभाजनकारी धारा 370 का जहर खींचकर
बाहर निकाला गया। दशकों से पाकिस्तानपरस्त तत्व धमकी दे रहे थे कि 370 को
हाथ लगाया तो कश्मीर जल उठेगा, कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं
बचेगा। 5 अगस्त, 2019 को 370 को व्यावहारिक रूप से निष्क्रिय करने के बाद
एहतियात के तौर पर कश्मीर घाटी में सघन सुरक्षा उपाय किए गए। जिहादी आतंक
का सफाया पूरी ताकत से चलता रहा।
धीरे-धीरे हालात सामान्य होने
लगे। मार्च में ब्रॉडबैंड और अगस्त 2020 में मोबाइल इंटरनेट सुविधा बहाल
हुई। आईएसआई की पटकथा आधारित गीदड़-भभकियां बेबस हो गर्इं। आजादी के बाद से
कश्मीर का खून चूस रही भ्रष्ट सियासी जमात को कानून के कठघरे में खड़ा किया
जाने लगा। दिसंबर में राज्य के जिला विकास परिषद चुनावों में भाजपा न सिर्फ
370 समर्थकों के संयुक्त मोर्चे से लड़कर राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में
उभरी, बल्कि अलगाववादियों का गढ़ रहे श्रीनगर, पुलवामा और बांदीपोरा में भी
अपना झंडा लहराने में सफल हुई। गुपकार नामक यह संयुक्त मोर्चा सात
पार्टियों का गठबंधन है, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रैटिक
पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, सीपीआई-सीपीआई-एम, अवामी नेशनल कॉन्फे्रंस तथा
जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट शामिल हैं। इस मोर्चे के अलावा कांग्रेस
भी 370 की जनक व समर्थक रही है। इन सबसे मुकाबला कर 370 विरोधी भाजपा का
75 सीटें जीतना बताता है कि राष्ट्रवाद और विकास की आकांक्षा अलगाववाद पर
भारी पड़ रही है।
2019 के अंत में सीएए आया। इसके तहत भारत विभाजन
के बाद से इस्लामी रिपब्लिक आॅफ पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो लोग फंसे
हुए हैं व 70 साल से मुस्लिम न होने के अपराध की सजा भुगत रहे हैं, उन्हें
भारत में आसरा मिलेगा, नागरिकता दी जाएगी, जैसा कि देश विभाजन के समय
गांधीजी, देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू और तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने
वादा किया था। लेकिन इसी कांग्रेस के नेतृत्व में सीएए के विरुद्ध देश में
तमाशा खड़ा किया गया। हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाई गई। दिल्ली में शाहीनबाग
से देश को तोड़ने की बातें होने लगीं। इस जहरीले प्रचार का चरम आया साल
2020 में, जब दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगा हुआ। देशभर में मजहबी उन्माद से
भरे उग्र प्रदर्शन किए जाने लगे। माहौल को गरमाने के लिए शाहीनबाग की तर्ज
पर विभिन्न शहरों में करीब 400 धरने प्रायोजित किए गए, वातावरण बिगाड़ा
गया। बड़े-बड़े सेकुलर बुद्धिजीवी, शायर, पत्रकार मुखौटे उतारकर कठमुल्लापन
को खुलेआम हवा देने लगे।
2020
6 दशक से जारी चीन की भारत ने निकाली हेकड़ी
5अगस्त को राम मंदिर भूमिपूजन,
सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना
सेकुलर ताकतों को अपनी खोई हुई सियासी
जमीन को फिर से हासिल करने का मौका दिख रहा था, लेकिन बाजी पलट गई। सरकार
ने साफ कर दिया कि वह इस कानून से इंच भर भी पीछे नहीं हटेगी। वहीं,
शाहीनबाग के जिहादी प्रहसन ने देश में राष्ट्रीय भावनाओं का एक तूफान खड़ा
किया। सेकुलर-जिहादी गठजोड़ का पुराना शगल रहा है कि जोर से शोर मचाओ तो
राष्ट्रीयता के स्वर उसके नीचे दब जाते हैं और धमकी-दंगा तंत्र हावी हो
जाता है। लेकिन वैचारिक उत्तेजना का ये तूफान इस बार इस फसादी गिरोह को
तिनके की तरह उड़ा ले गया। ‘लिंचिस्तान’, ‘असहिष्णुता’ जैसे फर्जी जुमलों की
तरह इस षड्यंत्र की भी हवा राष्ट्रीयता के इस ज्वार ने निकाल दी। इसी
गिरोह का एक और प्रयोग दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा है। फिलहाल कृषि कानूनों
के विरुद्ध किसानों को बहका कर अफवाहों की राजनीति की जा रही है। कथित
किसान आंदोलन में देश विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं। राजनीति की महफिलें सज
रही हैं। अंत में किसानों ने ही कथित किसान क्रांति के खिलाफ मोर्चा खोला।
अब इस तथाकथित किसान आंदोलन के तंबू उखड़ने ही वाले हैं।
1962 की
नेहरू द्वारा निर्मित सैन्य पराजय के बाद से चीन भारत को न केवल आंखें दिखा
रहा था, बल्कि पाकिस्तान को हर तरह से भारत के खिलाफ मदद देता आया है।
2014 के बाद से भारत ने चीन से बातचीत शुरू की, सैन्य गठजोड़ खड़े किए, अपनी
सामरिक ताकत को स्थापित किया और 2017 में डोकलाम में चीन के मद को शर्मिंदा
किया। इस साल मई में जब गलवान घाटी में चीनियों ने भारत की सैन्य टुकड़ी पर
अचानक हमला किया तो हमारे सैनिकों ने ऐसा मुंहतोड़ उत्तर दिया कि चीनियों
के दिलों में स्थायी दहशत बैठ गई। कुछ समय बाद कैलाश मानसरोवर के पुराने
रास्ते पर पैंगोंग झील की पर्वत चोटियों से भी हमारी सेना ने चीनियों को
खदेड़ कर कब्जा जमा लिया है। चीन सीमा पर अब ब्रह्मोस तैनात है और राफेल
गरज रहे हैं। भारत ने अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी जैसे देशों के
साथ सैन्य गठजोड़ कर लिया है। चीन की हेकड़ी निकल गई है। देश में चीनी
व्यापार की भी जड़ें खोदी जा रही हैं।
कोरोना काल में 137 करोड़ की
आबादी वाले भारत को स्वास्थ्य क्षेत्र की पुरानी वर्जनाओं से लड़ते हुए,
लॉकडाउन के आर्थिक दबाव से जूझते हुए, तब्लीगी मानसिकता और हरकतों से
निपटते हुए कोरोना से पार पाना था। दुनिया ने आश्चर्य से देखा कि भारत ने
यह कठिन काम कर लिया। अंदर-बाहर सब ओर खुले मोर्चों के बीच कोरोनाकाल में
भारत ने अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक व तकनीकी क्षमता का परिचय
दिया।