केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने आत्मनिर्भर भारत में महिलाओं की
भूमिका विषय पर अपने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि आत्मनिर्भरता की नींव शिक्षा
से ही बनती है। आज के भारत में भले ही आपको लैंगिक भेदभाव दिखता हो लेकिन
परंपरागत भारत में स्त्री—पुरुष के बीच कोई भेदभाव नहीं था
भोपाल में चल रहे तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस एवं नेशनल एक्सपो ‘सार्थक
एजुविज़न-2021’ के दूसरे दिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और
शिक्षा में भारतीयता के समावेश के उद्देश्य पर ‘शिक्षा और सुरक्षित बचपन’
विषय पर नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने ऑनलाइन अपना उद्बोधन
दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारतीयता मां के दूध के समान है, जो अमूल्य
और अद्वितीय है। उसमें सार्वभौमिकता, समग्रता, गतिशीलता, समानता और
स्वीकार्यता जैसे पांच गुणों का समावेश है। यह अन्य सभ्यताओं में दिखाई
नहीं देते हैं। श्री सत्यार्थी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए हो रहे
मंथन में कहा कि मातृभाषा से ही उन्नति के रास्ते खुलते हैं, क्योंकि सृजन
मातृभाषा से ही संभव होता है। हम धन संपत्ति से नहीं बल्कि ज्ञान-विज्ञान
से ही विश्वगुरु बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम सबकी जिम्मेदारी है कि
अपने बच्चों को शिक्षा और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित कराएं। इस सत्र का
संचालन भारतीय शिक्षण मंडल के अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने किया।
उद्बोधन के बाद श्री सत्यार्थी ने सभागार में उपस्थित शिक्षकों एवं संस्था
प्रमुखों से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में 'मैं'
पर जोर नहीं है, 'हम' को प्रमुखता है।
शिक्षा से बनती है आत्मनिर्भरता की नींव
तीसरे
सत्र में केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने आत्मनिर्भर भारत में
महिलाओं की भूमिका विषय पर अपने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि आत्मनिर्भरता की
नींव शिक्षा से ही बनती है। आज के भारत में भले ही आपको लैंगिक भेदभाव
दिखता हो लेकिन परंपरागत भारत में स्त्री—पुरुष के बीच कोई भेदभाव नहीं था।
भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री मुकुल कानिटकर के
साथ ऑनलाइन संवाद में सुश्री स्मृति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर कहा कि यह
निश्चित रूप से हमारी समस्याओं का समाधान करेगी। आज साबुन बनाने वाली
कंपनी भी कस्टमर से राय लेती है, लेकिन अभी तक की शिक्षा व्यवस्था बिना
अभिभावकों के राय के थोपी जा रही थी। महिलाओं की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित
करने के लिए हमें उन क्षेत्रों में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक शोध करने की
आवश्यकता है, जहां शोध नहीं हुआ है। संस्कृति में अमूल्य, अद्भुत और अद्वितीय ज्ञान का भंडार
समिधा
नाम से आयोजित सत्र में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति जे.
भानुमूर्ति ने शिक्षाविदों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन और
चिंतन का अनुसरण किए बिना विश्व विकास और शांति को प्राप्त नहीं कर सकता
है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा में इतना अमूल्य, अद्भुत और अद्वितीय
ज्ञान का भंडार है, जिसे एक जीवन में जानना संभव नहीं है। विश्व कल्याण के
निमित्त इस ज्ञान का उपयोग करने के प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम
से होने चाहिए। अब तक हम अपनी प्रकृति के खिलाफ बनी शिक्षा व्यवस्था को ढो रहे थे
सांची
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा गुप्ता ने कहा कि आज की शिक्षा केवल
पांच उद्देश्यों के लिए सीमित रह गई है- एक जॉब, दो बच्चे, तीन कमरों का
मकान, चार पहिया वाहन और पांच अंकों में वेतन। इसमें जीवन, विश्वास, समाज,
राष्ट्र और शांति के लिये जगह नहीं है। हम आज भी वही शिक्षा व्यवस्था ढो
रहे हैं, जो अंग्रेजों ने हमारी प्रकृति के खिलाफ ही बनाई थी। उन्होंने कहा
कि 1857 में भारत में 3 प्रेसीडेंसी कॉलेज की स्थापना हुई थी और उसके बाद
आज सैकड़ों हजारों कॉलेज उसी मॉडल पर हमारे देश में हैं। लेकिन हमें याद
करना चाहिए कि जिस लंदन यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रेसीडेंसी कॉलेज स्थापित
किए गए थे, उसी लंदन यूनिवर्सिटी को तब ब्रिटेन ने अव्यवहारिक मानते हुए
तीन साल के लिए बंद कर दिया था।