कथित
किसान आंदोलन की असलियत जैसे—जैसे समाज के सामने आ रही है, लोगों का इससे
मोहभंग तो हो ही चुका है, साथ ही किसान आंदोलन के नाम पर जो संवेदना हासिल
की थी, वह भी खत्म हो चुकी है। ऐसे में भीड़ को वीआईपी सुविधा और लंगर का
लालच देकर धरनास्थल पर रोका जा रहा है
कथित किसान
आंदोलन की असलियत जैसे—जैसे समाज के सामने आ रही है, लोगों का इससे मोहभंग
तो हो ही चुका है, साथ ही किसान आंदोलन के नाम पर जो संवेदना हासिल की थी,
वह भी खत्म हो चुकी है। दरसअल, 26 जनवरी को लाल किला एवं दिल्ली में हुई
हिंसा के बाद किसानों के वेश में उपद्रवियों ने जिस तरह से अराजकता फैलाई,
उसे सारे देश ने देखा था। तब से ही इस कथित आंदोलन पर सवालिया निशान लग गए
और समाज ने इससे दूरी बनाना शुरू कर दिया।
अब स्थिति यह है कि सिंघु बार्डर
पर प्रदर्शनकारी नेताओं को दिन—प्रतिदिन घटती भीड़ परेशान कर रही है। लोग
अब यहां रुकना नहीं चाहते। लेकिन किसी तरह अलग—अलग पैंतरें अपनाकर
आंदोलनकारी नेता उन्हें रोकने के प्रयास करते दिखाई देते हैं। ऐसे में भीड़
को वीआईपी ट्रीटमेंट और लंगर का लालच देकर उन्हें धरनास्थल पर बने रहने को
कहा जा रहा है, ताकि पंडाल में भीड़ नजर आती रहे। पंडालों में भीड़ को
किशमिश, चाय—काफी, बादाम, घी, जलेबी—दूध, बर्गर—पिज्जा आदि मुहैया कराया जा
रहा है। इसके साथ ही वाटर प्रूफ टेंट में एसी, प्रोटीन के डिब्बों के साथ
जिम से लेकर मसाज तक की सुविधाएं उपलब्ध हैं।