करीब
15 महीने पहले महाराष्ट्र में बड़े नाटकीय तरीके से बनी महा विकास अघाड़ी
की गठबंधन सरकार के कुर्सी संभालते ही लगने लगा था कि यह सरकार ज्यादा लंबी
नहीं चल पाएगी। शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस, इन
तीनों घटकों में वैचारिक मतभेदों की गहरी खाई है। उद्धव ठाकरे की हठधर्मिता
पर बने इस गठजोड़ ने सत्ता में आते ही न सिर्फ कोरोना पर लापरवाही बरती
बल्कि शासन को भ्रष्टाचार में आकंठ डुबो दिया। सचिन वाझे या परमबीर तो एक
हल्की-सी झलक हैं, राज्य में पनपाई गई हिंसा में पगी घोटालेबाजी की
महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार की संस्कृति के पीछे जिम्मेदार माना जाता है शरद पवार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को
महाराष्ट्र
में पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम से देश हतप्रभ है। पिछले करीब 15 महीने
में महाराष्ट्र एक डांवांडोल सरकार का शासन भोगता आ रहा है। पूर्ववर्ती
फडणवीस सरकार के शुरू किए हर विकास कार्य को वर्तमान गठबंधन सरकार के
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने रुकवा दिया है। चीनी वायरस कोरोना से उपजी
महामारी के संदर्भ में भी उद्धव सरकार का नियोजन शून्य रहा है जिसके कारण
राज्य पहले से ही बेहद संकट की स्थिति में बना हुआ है। आज देश में कोरोना
पीड़ितों की कुल संख्या में अकेले महाराष्ट्र का स्थान 80 प्रतिशत है। राज्य
में हिन्दू दमन के अनेक मामले हुए हैं। इन सब हालात के बीच उद्योगपति
मुकेश अंबानी के घर के बाहर मिली विस्फोट से लदी कार और उससे शुरू हुए
प्रकरण ने आज महाराष्ट्र सरकार के साथ ही राज्य के पुलिस बल पर अनेक
सवालिया निशान लगाए हैं। आश्चर्य नहीं कि चारों ओर से उद्धव सरकार से नैतिक
आधार पर इस्तीफा देने की मांग हो रही है।
उद्धव सरकार के पतन का आरंभ! कुछ
हफ्ते पहले दुनिया के बड़े उद्योगपतियों में से एक रिलायन्स उद्योग समूह के
मालिक मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित बहुमंजिला निवास एंटिलिया के सामने एक
स्कोर्पियो कार मिली जिस में जिलेटीन विस्फोटक भरे थे। उसी समय विश्लेषकों
ने संदेह व्यक्त किया था कि यह कहीं न कहीं फिरौती वसूली का मामला है।
लेकिन मुंबई पुलिस के एक खेमे ने इसे आतंकवादी घटना करार दिया। केन्द्र
सरकार की जागरुकता से देश की आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा बहुत हद तक चुस्त
है। ऐसे में मुंबई में अंबानी के घर के सामने विस्फोटक भरी गाड़ी मिलना
चौंकाने वाली घटना थी। विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने राज्य विधानसभा
में जोर-शोर से यह मुद्दा उठाया। घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचे मुंबई पुलिस
में सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे पर संदेह हुआ। फडणवीस ने न केवल सदन
में संबंधित कॉल रिकॉर्ड रखे, बल्कि कई महत्वपूर्ण दस्तावेज भी पेश किये।
उन्होंने मांग की कि सचिन वाझे को तुरंत हिरासत मेंलिया जाए।
सचिन वाझे
को मुख्यमंत्री ठाकरे का करीबी माना जाता रहा है। 2004 में एक युवा मुस्लिम
डॉक्टर की हिरासत में मौत के मामले में वाझे पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार
ने कार्रवाई करते हुए उसे निलंबित कर दिया था। 2008 में वाझे पुलिस की
नौकरी छोड़कर आधिकारिक रूप से शिवसेना में शामिल हो गया। वह अनेक वर्ष
शिवसेना का प्रवक्ता रहा। 2014 में जब फडणवीस सरकार सत्ता में आयी, तब
उद्धव ठाकरे ने सचिन वाझे को पुलिस की नौकरी में फिर से बहाल कराने के लिये
फडणवीस पर दबाव बनाया, लेकिन उसे बहाल नहीं किया गया। लेकिन जैसे ही
उद्धव की अगुआई में महा विकास अघाड़ी की सरकार सत्ता में आई, वाझे की पुलिस
की नौकरी बहाल करने की जोड़-तोड़ शुरू हो गई। परम बीर सिंह मुंबई के पुलिस
आयुक्त बनाये गये, तब गृह मंत्रालय ने उन्हें वाझे को बहाल करने को कहा।
जून 2020 में एक दिन आधी रात परम बीर ने एक बैठक बुलाकर एक तथाकथित समिति
की बैठक कराई और दस मिनट के अंदर वाझे की बहाली स्वीकृत हो गई। गृह मंत्री
अनिल देशमुख को यह जानकारी दे दी गई। महाराष्ट्र गृह मंत्रालय ने रातोंरात
आदेश जारी कर दिया। वाझे को गुप्तचर विभाग का प्रमुख बनाया गया। इस विभाग
को बहुत शक्तिशाली माना जाता है।
फिर राज्य में एक बड़ा राजनीतिक चक्र
चला, जिसमें सरकार पर आंच लाने वाले कई प्रकरण वाझे को सौंपे जाने लगे।
इसीलिये जब मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक भरी कार मिली तो वहां सबसे
पहले ‘जांच’ के लिए वाझे ही पहुंचा। लेकिन बाद में राष्टÑीय जांच एजेंसी
(एनआईए) की विस्तृत जांच में साफ होता गया कि वाझे का इस प्रकरण में स्पष्ट
हाथ था और उसके साथ कई अन्य बड़े नाम इस सबसे जुड़े हैं। वाझे को हिरासत में
लेकर जांच आगे बढ़ी।
पत्र के जरिए साक्ष्य प्रस्तुत कर राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख की सीबीआई जांच की मांग करते हुए परमबीर सिंह
इस
पूरे प्रकरण में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह की भूमिका पर
कई सवालिया निशान लगे हैं। वे पहले कांग्रेस के करीबी माने जाते थे। लेकिन
उद्धव सरकार बनने के बाद उनके शिवसेना से करीबी रिश्ते बने। मुख्यमंत्री ने
उन्हें मुंबई के पुलिस आयुक्त के महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया। ऐसे में
एनआईए ने जब वाझे को पकड़ा, तब घटना की दिशा को देखते हुए शरद पवार ने परम
बीर को मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से हटाने की मांग की। माना जाता है कि
उसके बदले में शिवसेना ने गृह मंत्री अनिल देशमुख को हटाना चाहा। लेकिन
सरकार गिरने के डर से ठाकरे देशमुख को सीधे हटा नहीं पाये। ऐसे में परम बीर
का अनिल देशमुख मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग करने वाला पत्र सामने
आया। साफ दिखने लगा कि यह मामला अब शिवसेना बनाम एनसीपी की लड़ाई बन चुका
है।
सचिन वाझे की हिरासत को शिवसेना ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है।
दूसरी ओर, राज्य में पहले के अनेक घोटालों में अपने अनेक नेताओं को जेल
जाते देख चुकी राकांपा अपना पल्लू साफ दिखाने का लगातार प्रयास कर रही है।
सकते में शिवसेना अब
यह सिद्ध हो चुका है कि सचिन वाझे ने ही मुकेश अंबानी के घर के सामने
विस्फोटक रखे थे। उसने जिन आलीशान गाड़ियों का प्रयोग किया एनआईए को उनमें
से कई गाड़ियां तत्कालीन पुलिस आयुक्त परमबीर के कार्यालय परिसर से मिली
हंै। जैसा ऊपर कहा गया है, वाझे और परमबीर, दोनों शिवसेना के करीबी माने
जाते हैं। इसी कारण शिवसेना में डर का वातावरण है। परमबीर के पत्र के
माध्यम से यह इशारा जाता है कि सिर्फ राकांपा ही उद्योगपतियों से वसूली कर
रही थी। वहीं राकांपा शिवसेना पर सीधे वार करने से चूक रही है, क्यों कि
गृह मंत्री अनिल देशमुख शरद पवार के बेहद करीबी माने जाते हंै। यह जगजाहिर
है कि राकांपा में दो गुट हैं, एक शरद पवार का और दूसरा उनके ताकतवर भतीजे
अजित पवार का। लेकिन राकांपा ने जनता को यह जताने में कोई कसर नहीं उठा
रखी है कि सचिन वाझे और परमबीर, दोनों शिवसेना के करीबी हैं। ऐसे में
शिवसेना राकांपा के जाल में फंसती दिख रही है। विश्लेषकों का मानना है कि
इसी जाल से निकलने के लिये सीबीआई जांच की मांग करने वाले परमबीर के पत्र
को हथियार बनाया गया है।
इस आपसी घमासान से सरकार में बैठीं दोनों
पार्टियां अपनी विश्वसनीयता खो चुकी हैं। मुंबई पुलिस पर इस घटनाक्रम से
बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा है। सचिन वाझे प्रकरण में एनआईए को पुख्ता प्रमाण
मिले हंै। वहीं परम बीर ने भी महाराष्ट्र के गृह मंत्री के विरुद्ध
सर्वोच्च न्यायालय में अकाट्य प्रमाण दर्ज कराए हैं। माना जा रहा है कि
मुख्यमंत्री उद्धव को इनमें से अनेक प्रकरणों की जानकारी थी। ऐसे में
उद्धव ठाकरे, शिवसेना, राकांपा, शरद पवार और कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी से
भाग नहीं सकते। अब यह प्रकरण ठाकरे सरकार के गले की फांस बन गया है जो न
उगलते बन रही है, न निगलते। इसका प्रमाण भी है, और वह यह कि मुख्यमंत्री
उद्धव ठाकरे, उनके मंत्री पुत्र आदित्य ठाकरे पत्रकारों से दूर भाग रहे
हैं। पूरे घटनाक्रम पर इन दोनों की तरफ से एक भी बयान नहीं आया है। माना जा
रहा है कि इन पुलिस अधिकारियों के अलावा ठाकरे परिवार के कई करीबी शिवसेना
मंत्री भी इस कांड की बलि चढ़ सकते हैं। गृह मंत्री अनिल देशमुख ने पहले ही
खुला आरोप लगाया है कि शिवसेना के मंत्री अपना विभाग छोड़ गृह विभाग के काम
में दखल देते रहे हैं। वहीं दूसरी ओर राकांपा अनिल देशमुख के पीछे लामबंद
होती दिख रही है।
मुंह ताक रही कांग्रेस इस सारे
घटनाक्रम में इसी सरकार में शामिल कांग्रेस कहीं नजर नहीं आ रही है। पहले
तो विश्लेषकों को आशंका थी कि अंबानी प्रकरण में कांग्रेस का हाथ हो सकता
है, क्यों कि देशभर में चुनावों के लिए कांग्रेस को पैसा चाहिये, जिसकी
पार्टी को कमी महसूस हो रही है, इसलिए वह देश के उद्योगपतियों पर लक्ष्य
साध रही है। लेकिन अभी तक जितनी जानकारी सामने आई है उसमें कांग्रेस के ऊपर
कोई भी सीधा आरोप नहीं दिखता। फिर भी सरकार में अनेक महत्वपूर्ण विभाग
संभाल रही कांग्रेस जवाबदेही से नहीं बच सकती। इसीलिये 23 मार्च की शाम
कांग्रेस के नेताओं की एक बैठक हुई, जिसमें चर्चा की गई कि इस घमासान से
कांग्रेस को अलग कैसे दिखाया जाए। इन हालात में क्या, कैसे करना है, इसका
निर्णय सोनिया गांधी पर छोड़ दिया गया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक
कांग्रेस खेमे से मिली जानकारी के अनुसार पार्टी में एक गुट ठाकरे सरकार से
समर्थन वापस लेने पर जोर डाल रहा है, तो दूसरा गुट कह रहा है कि जब तक
कांग्रेस के दामन पर दाग नहीं लगता तब तक इस सरकार में बने रहना चाहिये।
फिलहाल पार्टी की यही रणनीति दिख रही है।