क्वाड: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ता भारतीय दबदबा, सशक्त नेतृत्व से खुलती राहें
दिनांक 07-अप्रैल-2021
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अभिषेक कुमार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत
राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से अब इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच चुका है
कि दोस्त क्या अब दुश्मन भी उसका लोहा मानने लगे हैं।
विदेश
नीति एक निरंतरशील प्रक्रिया है और प्रगतिशील भी। जहां विभिन्न कारक
भिन्न-भिन्न स्थितियों में अलग-अलग प्रकार से देश—दुनिया को प्रभावित करते
रहते हैं। इसी को ध्यान में रखकर नए-नए मंचों की न केवल खोज होती है, बल्कि
व्याप्त समस्याओं से निपटने के लिए विभिन्न देशों में एकजुटता को भी ऊंचाई
देनी होती है। अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बहुत तेजी से बदलता है। उसके अनुरूप
अपनी नीतियों में फेरबदल करना भी आवश्यक हो जाता है। इसके लिए पर्याप्त
लचीलेपन की आवश्यकता होती है। अतीत में भारतीय विदेश नीति में इसका एक
प्रकार से अभाव दिखा, लेकिन मोदी सरकार की विदेश नीति व्यावहारिक मोर्चे पर
पूरी तरह पारंगत दिखती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत के पास-पड़ोस में
अक्सर अस्थिरता हावी रही। इस कारण भारत का रवैया भी प्रायः प्रतिक्रियात्मक
रहा, परंतु मोदी सरकार में इस रीति-नीति में बदलाव आया है। प्रधनमंत्री
मोदी की विदेश नीति में पड़ोसियों को प्राथमिकता देने का जो सिलसिला शुरू
हुआ, उसमें इन देशों को लेकर भारत की दृष्टि बदली है। विदेश नीति में आया
यह बदलाव उपयुक्त एवं तार्किक है, क्योंकि सदा परिवर्तनशील विदेश नीति को
किसी एक लकीर या सांचे के हिसाब से चलाया भी नहीं जा सकता। प्रत्येक मामले
के हिसाब से अलग पत्ते चलने होते हैं, तभी राष्ट्रीय हितों की पूर्ति संभव
हो पाती है। मोदी सरकार विदेश नीति की इसी व्यावहारिक राह पर चल रही है।
सशक्त नेतृत्व से खुलती राहें
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से अब
इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच चुका है कि दोस्त क्या अब दुश्मन भी उसका लोहा
मानने लगे हैं। चुनाव के जरिये प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को
हराने में असफल देश की विपक्षी पार्टियों को छोड़कर पूरी दुनिया हमारी इस
उपलब्ध को स्वीकार भी कर रही और सराह भी रही है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में
चीन की विस्तारवादी नीतियों के जवाब में भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और
जापान ने 14 साल पहले जिस क्वाड का गठन किया था, वह अब अपने सामरिक महत्व
से आगे बढ़कर आर्थिक जरूरत में बदल गया है और देखा जाए तो पिछले साल आई
कोरोना महामारी ने भारत को पूरी दुनिया के आकर्षण का केंद्र बना दिया है।
कोरोना
से पहले भारत सहित क्वाड के सभी देश अपनी जरूरतों के लिए चीन पर निर्भर
थे। अब कोरोना की वैक्सीन से लेकर सिरिंज तक की वैश्विक आपूर्ति भारत से हो
रही है। मोदी सरकार में रक्षा के क्षेत्र में भी देश की उपलब्धियों ने
दुनिया का विशेष ध्यान खींचा है। रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र के प्रवेश
और रक्षा उत्पादों की आयात सूची में कटौती के बाद से इस दिशा में खास
प्रगति हुई है। हमारी वायु सेना ने स्वदेशी कंपनी को एक साथ 83 तेजस लड़ाकू
विमानों का आर्डर देकर यह साबित कर दिया कि हम पूरी दुनिया की सेनाओं को
विश्वस्तरीय रक्षा निर्यात करने में सक्षम हैं। आज हमारी यूनीकार्न
कंपनियों में विदेशी निवेशक प्रवाहमय रूप से निवेश कर रहे हैं।
जाहिर
सी बात है कि इन कंपनियों में उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित दिख रहा है। यह
सब देश की विपक्षी पार्टियों को नहीं दिख रहा, क्योंकि उन्हें सिर्फ विरोध
करना है। इसलिए वे कहते हैं कि इस देश को सिर्फ दो उद्योगपति चला रहे हैं।
दरअसल, उन्हें तो अपना ही जमाना याद है, जब चुनिंदा पूंजीपतियों की ही
चलती थी। उन्हें ही प्रोजेक्ट भी मिलते थे और बैंकों से कर्ज भी। आज तो
जिसके पास आइडिया है, वह यूनिकार्न है यानी भारत न सिर्फ एक मजबूत राजनीतिक
लोकतंत्र है, बल्कि इसका आर्थिक तंत्र भी समानता के सिद्धांत पर ही चल रहा
है।
ना हो राजनीति
विदेश
नीति एक ऐसा मसला है जो सीधे तौर पर राष्ट्रहित से जुड़ा होता है। किसी भी
लोकतांत्रिक राष्ट्र में यह सामान्यतया माना जाता है कि इस पर राजनीति नहीं
होगी। वास्तव में राष्ट्रहित से जुड़े मसलों पर राजनीतिक वर्ग में एक आम
सहमति होनी चाहिए, परन्तु 2014 के बाद इसका भी राजनीतिकरण कर दिया गया है।
चुनावों में पराजय ने विपक्ष को इस स्तर पर ला दिया है कि वह इस मसले पर भी
राजनीति करने और कुंठित आरोप लगाने से बाज नहीं आ रहे। श्रीलंका को लेकर
तमिलों के मसले और प्रधनमंत्री की हालिया बांग्लादेश यात्रा को भी संकीर्ण
राजनीतिक दृष्टि से देखने का प्रयास किया गया। इससे राष्ट्र के दीर्घकालिक
हितों को ही आघात पहुंचता है। अच्छी बात यह रही कि मोदी सरकार ने ऐसे
दबावों को दरकिनार करते हुए व्यावहारिक विदेश नीति की राह पर चलने को
वरीयता दी है।