Research story of Shri Ramcharitmanas and Bhagiratha effort of Geeta Press
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भीमा कोरेगांव में हुई लड़ाई का जो सच बताया गया है दरअसल वह सत्य से कोसो दूर है। यह लड़ाई कंपनी और मराठा सेनाओं के बीच हुई थी। कंपनी की सेना को नेतृत्व कर रहे कप्तान स्टोंटो ने आत्मसमर्पण की गुहार लगाई थी. भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के शुरुआती संघर्षों में से एक कोरेगांव के इस टकराव को बड़े परिपेक्ष्य में देखने की जरूरत है. इसे मात्र जाति अथवा संप्रदाय के आधार पर देखना सबसे बड़ी भूल है
अटल जी कवि ही नहीं बल्कि एक कुशल संपादक भी थे, उनका लेखकीय मन हमेशा कुछ लिखने या संपादित करने को तैयार रहता था। वे कुछ नया खोज ही लेते थे और फिर उस पर चर्चा करते थे
जयंती विशेष: अजातशत्रु अटल ! अजातशत्रु। जननायक। शिखर-पुरुष...कितने ही विशेषणों से संबोधित कर सकते हैं हम भारतीय राजनीतिक-साहित्यिक-सामाजिक जगत की महाविभूति मुदितमना अटल बिहारी वाजपेयी को
प्रदक्षिणापिछले कई साल से हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने की चर्चा चल रही है। अनेक संगठन और लोग इसके पक्ष में तर्क दे रहे हैं, तो कुछ लोग विरोध भी कर रहे हैं। आइए जानते हैं भाग्यनगर से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्यग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव का प्रचार करने से पहले भाग्यलक्ष्मी मंदिर में पूजा-अर्चना करते केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (फाइल चित्र)वास्तव में देखा जाए तो विभिन्न निजाम और 1948 के बाद कांग्रेसी सरकारों द्वारा इतिहास से इस शहर का हिंदू नाम मिटाने के सभी प्रयासों के बावजूद इसका
गत दिनों भारत सरकार की संस्था ‘भारतीय चिकित्सा परिषद’ ने आयुर्वेद के स्नातकोत्तर चिकित्सकों को 58 प्रकार की शल्यक्रिया (आॅपरेशन) करने की अनुमति दे दी। पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इसका खुलकर विरोध किया। आईएमए एलोपैथिक चिकित्सकों का संगठन है। यानी एलौपैथिक के चिकित्सकों को यह पसंद नहीं कि आयुर्वेद के चिकित्सक शल्यक्रिया करें। उनका कहना है कि आयुर्वेद में सर्जरी की स्तरीय पढ़ाई नहीं होती इसलिए वे आॅपरेशन नहीं कर सकते। वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सकों का कहना है कि वे भी विधिवत सर्जरी की पढ़ाई करते
प्रो. श्रीप्रकाश सिंह डॉ. आंबेडकर का कर्मयोग किसी समुदाय विशेष के लिए न होकर समग्र समाज और सारी मानवता के लिए है। इस महामानव ने भारतीय हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने, परिवर्तित करने और दलितों, वंचितों के उत्थान, समानता एवं सम्मान के लिए जिस निष्ठा और समर्पण भाव से संघर्ष एवं प्रयास किया, वह अविश्वसनीय एवं अनुकरणीय हैडॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को उनकी समग्रता में देखना कोई आसान कार्य नहीं है। डॉ. आंबेडकर विश्व के उन महारथियों में हैं, जिनके जुझारू जीवन और अनवरत संघर्ष से प्रेरणा लेकर भावी पीढ़ी
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से राष्ट्र की सुप्त पड़ी विराट चेतना एवं सोए हुए हिंदू पौरुष को जगाने का काम श्रद्धेय श्री अशोक सिंहल ने किया। उनके व्यक्तित्व का यह अदभुत कौशल था कि देश के शीर्षस्थ, संत महात्मा काशी के डोम राजा के घर सहभोज में सम्मिलित हुए। उन्हीं महापुरुष की आज पुण्य तिथि है
दत्तोपंत जी मानते थे कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना में धार्मिक आडंबरों की कोई जगह नहीं है, बल्कि वे हमेशा ही अपने व्याख्यानों एवं चर्चाओं में भारत की मूलभूत मान्यताओं की बुनियाद पर एक आधुनिक भारत के निर्माण की दिशा दिखाते थे
जन्मदिन विशेष: दत्तोपंत ठेंगड़ी दृष्टा और सृष्टा
आज एक ऐसे हिंदू राजा हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य) के अनन्य व्यक्तित्व और विशालता के बारे में जानेंगे जिन्होंने 22 लड़ाइयां जीतीं। मध्यकाल में दिल्ली पर शासन किया। इतिहासकारों ने उन्हें भारत का नेपोलियन कहा है
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जिक्र आते ही आंखें चमक उठती हैं। वे मात्र उत्कृष्ट वैज्ञानिक ही नहीं, एक नायाब इनसान भी थे जो सभी मत-पंथों को समान रूप से सम्मान देते थे। वे भारतीय संस्कृति और परंपरा में ढले ऋषि, मानवतावादी, प्रकृति, संगीत प्रेमी एवं बेहतरीन लेखक भी थे। आज उनका जन्मदिन है
पाञ्चजन्य ब्यूरोज्ञानपीठ पुरस्कर से सम्मानित महाकवि अक्कितम के गृहनगर के पास कडवल्लूर में श्री रामास्वामी मंदिर उनकी तपस्या का जीता-जागता स्मारक है। यहां आयोजित होने वाली अन्योन्यम शास्त्रार्थ प्रतियोगिता में विश्व के वैदिक विद्वान एकत्रित होते हैं। उनकी समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में बड़ी भूमिका हैसाहित्य साधना में रत अक्कितम अच्युतन नम्बूदिरी (फाइल चित्र)जब मीडिया में 94 वर्षीय अक्कितम अच्युतन नम्बूदिरी को 2019 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मा
मार्गरेट नोबेल 28 जनवरी,1898 को अपना परिवार,देश ,नाम,यश छोड़ कर भारत आई थीं। यहां आने के बाद 25 मार्च, 1898 को स्वामी विवेकानंद उनको ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी और निवेदिता नाम भी ।13 अक्टूबर 1911 को 44 साल की उम्र में उन्होंने दार्जीलिंग में अंतिम सांस ली। अपने नाम निवेदिता के अनुरूप ही उन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीयों की सेवा में समर्पित कर दिया
डॉ. श्रीरंग गोडबोलेमोपला हिंसा उपद्रव का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंक कर इस्लाम के राज्य की स्थापना करना था।—डॉ.भीमराव आम्बेडकरखिलाफत आंदोलन के दौरान जो हिंसक वारदातें हुर्इं, इतिहास में उन्हें मोपला विद्रोह नाम से दर्ज किया गया। लेकिन यह कोई क्रांति नहीं, बल्कि जिहाद था। आश्चर्य है कि खिलाफत आंदोलन और मोपला ‘विद्रोह’, दोनों में भाग लेने वालों को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ के रूप में मान्यता दी गई खिलाफत आंदोलन के दौरान हिंसा की कई घटनाएं हुर्इं। उस कालखंड (1919-1922) में उन श
अक्तूबर 11, 1916 की वह शरद पूर्णिमा की रात। उस रात महाराष्ट्र के परभणी जिले के हिंगोली तालुका के कडोली नामक छोटे-से गांव में अमृतराव देशमुख की धर्मपत्नी राजाबाई की कोख से एक पुत्र ने जन्म लिया। वही बालक नानाजी के नाम से विख्यात हुआ। शिशुकाल में ही नाना माता-पिता की स्नेहछाया से वंचित हो गए। नाना ने अभाव और अशिक्षा के घने अंधेरे से संघर्ष किया।
वामपंथी साहित्यकार जिन तुलसीदास को हमेशा खारिज करते रहे, उन्हें रामविलास शर्मा ने मध्यकालीन भारत का महान कवि बताया। इसी तरह, उन्होंने ऐसे इतिहासकारों का विरोध किया जो यह मानते हैं कि प्रारंभ में भारतीय बर्बर और असभ्य थे, जिन्हें अंग्रेजों ने शिक्षित और सभ्य बनाया
डॉ. रामविलास शर्मा ने जब भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा के बारे में फैलाए गए झूठ से पर्दा उठाया तो वामपंथियों को यह बात स्वीकार नहीं हुई। अपनी चिर परिचित आदत के अनुसार वामपंथियों ने वामपंथ के भीतर उन पर विमर्श करने के बजाए वामपंथियों ने उन्हें ही खारिज कर दिया
पूनम नेगी मुगल आक्रांता औरंगज़ेब की सेना को धूल चटाकर "चिड़ियन से मैं बाज तड़ाऊ, सवा लाख से एक लड़ाऊं, तब गोबिंद सिंह नाम कहाऊं" का ओजस्वी नारा बुलंद करने वाले दशम गुरू बेमिसाल योद्धा थेइतिहास साक्षी है कि जब जब विदेशी आक्रांताओं ने हमारी पावन भूमि के सनातन जीवन मूल्यों को नष्ट करने का प्रयत्न किया तो मां भारती के वीर सपूतों ने डटकर उनसे मोर्चा लिया और भारतीय जीवनमूल्यों की पुन: प्रतिष्ठा की। विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय स्थान रखने वाले सिख समाज के दशम गुरू गोबिंद सिंह की गणना इस
खालसा यानी जो मन, वचन और कर्म से शुद्ध हो और जो समाज के प्रति समर्पण का भाव रखता हो। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की सिरजना कर एक ऐसे वर्ग को तैयार किया जो सदैव समाज और देशहित के लिए संघर्ष करता रहा। अमृत के चंद छीटों से उन्होंने इनसानी मन का ऐसा बदलाव किया, जिसकी मिसाल और जगह नहीं दिखती
गांधी जी एक काल के नहीं हैं। उनका चिंतन, विचार और व्यवहार 20वीं शताब्दी में हुए, लेकिन उनके नाम से एक पूरा युग जाना जाता है। समाज के प्रत्येक क्षेत्र में गांधी विचार या गांधीवाद का असर देखा जा सकता है। ''संचार के उद्देश्यों की बात की जाए, तो गांधी विश्व के सबसे सफल संचारक थे। अपने इसी गुण के कारण वह देश के अंतिम व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे।'' उक्त विचार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने गुरुवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वार
.महात्मा गांधी की आज जयंती पर देश उन्हें याद करेगा। उनके बताए रास्तों पर चलने का संकल्प भी लेगा। पर देश उन अनाम गांधी के साथियों का स्मरण नहीं करेगा, जो राष्ट्रपिता के अंतिम दौर में अंग-संग रहा करते थे। वे उनकी सेवा किया करते थे।महात्मा गांधी की आज जयंती
रवि पाराशर गांधी जी ने अनेक अवसरों पर रा.स्व. संघ की प्रशंसा की थी। वे संघ के वर्धा शिविर में गए थे, जहां स्वयंसेवकों के अनुशासन और जात-पात रहित वातावरण ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था। गांधी जयंती पर प्रस्तुत है गांधी जी और संघ के बीच रहे संबंधों और कांग्रेस के नेहरूवादी दरबारियों द्वारा संघ के विरुद्ध हमेशा से फैलाए जाते रहे झूठे विमर्श का विशद विश्लेषणभारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित संपूर्ण गांधी वाड्मय (खंड 89, पृष्ठ संख्या 215-217) में 16 सितंबर, 1947 को दिए गए महात्मा गांधी के संबोधन का ए
डॉ. श्रीरंग गोडबोले1920 में खिलाफत के उफान को कुछ ठंडा पड़ने पर मजहबियों को अफगानिस्तान तक हिजरत के लिए उकसाया गया। अली बंधुओं के अलावा मौलाना आजाद ने भी मुस्लिमों के भारत से पलायन की पैरवी की कविता को भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति माना जाता है। लेकिन लोगों की सामूहिक चेतना को भेदने वाली कविता उनके मानस को भी दर्शाती है। जैसा कि श्री अरबिंदो ने कहा था, ‘‘तब तक कोई विश्राम, नींद और शांति नहीं हो सकती, जब तक कि उनका मंदिर तैयार नहीं हो जाता, प्रतिमा स्थापित कर उनको हविष्य अर्पित
अदालत का फैसला आने के बाद ढांचा विध्वंस मामले का पटाक्षेप हो गया। अब सवाल उन पर उठना चाहिए जो दशक दर दशक देश की भावनाओं का अनादर करते हुए सत्य को भटकाने और देश को धमकाने की कोशिशें करते रहे। जिन्होंने हिंदू समाज के असीम धीरज का दशकों तक तिरस्कार किया। अब वे जवाब दें..ढाँचा विध्वंस मामले में अदालत का फैसला आ गया। 28 वर्षों से बन रही और बनाई जा रही सुर्ख़ियों का पटाक्षेप हो गया है। हालाँकि “लिबरल-सेकुलर” ब्रिगेड के कुछ छुटभइयों ने इस फैसले को लेकर भी उन्माद भड़काने और संदेह खड़ा करने की हलचलें तेज कर
वीर सावरकर और भगत सिंह का रिश्ता बेहद प्रगाढ़ था । सशस्त्र क्रांति द्वारा भारतीय स्वातंत्र्य की प्राप्ति, भारत को धार्मिक नहीं अपितु विज्ञान की नींव पर खड़ा करना, मुस्लिम अलगाव के खतरा को पहचानने जैसे अनेकों विचारों में दोनों में समानता पाई जाती है
पिछले दिनों विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने लव जिहाद पर केंद्रित राष्ट्रीय जागरण की पाक्षिक पत्रिका ‘हिन्दू विश्व’ के विशेषांक का विमोचन किया। पत्रिका में लव जिहाद की 147 घटनाओं की सूची सहित दिए गए तत्थ्य समाज की आंखें खोलने वाले हैं।पिछले दिनों विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने लव जिहाद पर केंद्रित राष्ट्रीय जागरण की पाक्षिक पत्रिका ‘हिन्दू विश्व’ के विशेषांक का विमोचन किया। पत्रिका में लव जिहाद की 1
नई दिल्ली स्थित विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) मुख्यालय में श्री अशोक सिंहल जी की जयन्ती के अवसर पर उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए विहिप के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने कहा है कि हमारे अशोक जी श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन के प्राण थे। उन्होंने सम्पूर्ण हिन्दू समाज को झकझोर कर जगाया, संगठित किया तथा एक मजबूत संघर्ष का नेतृत्व किया।गत 27 सितम्बर को नई दिल्ली स्थित विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) मुख्यालय में श्री अशोक सिंहल जी की जयन्ती के अवसर पर उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए विहिप के केन्द्रीय
डॉ. नीरज देवजिन करतार सिंह सराभा को भगतसिंह अपना गुरु मानते थे उन साराभा में उत्कट देशभक्ति की लौ जलाई थी वीर सावरकर ने। भगत सिंह ने कई लेखों में सावरकर को ‘वीर’ कहकर संबोधित किया था और उनको अनूठी विभूति बताया थावीर सावरकर के विरोधियों द्वारा बार-बार अमर हुतात्मा भगतसिंह की शहादत की दुहाई देकर वीर सावरकर की ‘माफीवीर’ कहकर भर्त्सना की जाती है। वास्तव में सरदार भगतसिंह गांधी, गांधीवाद तथा उनकी कांग्रेस से कोसों दूर थे, वे वीर सावरकर के विचारों, व्यक्तित्व एवं कृत्यो
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से राष्ट्र की सुप्त पड़ी विराट चेतना एवं सोए हुए हिंदू पौरुष को जगाने का काम श्रद्धेय श्री अशोक सिंहल ने किया। उनके व्यक्तित्व का यह अदभुत कौशल था कि देश के शीर्षस्थ, संत महात्मा काशी के डोम राजा के घर सहभोज में सम्मिलित हुए। आज उन्हीं की जयंती है.
पं. दीनदयाल उपाध्याय मानते थे कि जब तक भारत के लोग अपनी भाषाओं का प्रयोग नहीं करेंगे, तब तक उनका विकास नहीं होगा और प्रभाव नहीं बढ़ेगा। वे यह भी कहते थे कि सरकारी संरक्षण में कोई भाषा विकास नहीं कर सकती। वे सभी भारतीय भाषाओं के विकास के प्रबल पक्षधर थे
समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति भी एक दिन सुखी और संपन्न जीवन बिताए, इसकी कल्पना दीनदयाल जी ने की थी। यह अच्छी बात है कि आज उनकी इस कल्पना को पूरा करने के लिए कई सरकारें काम कर रही हैं।राष्ट्र का अस्तित्व उसके नागरिकों के जीवन का ध्येयभूत आधार है। जब एक मानव-समुदाय के समक्ष एक व्रत, विचार या आदर्श रहता है एवं वह समुदाय किसी भूमि विशेष को मातृभाव से देखता है तो राष्ट्र कहलाता है। इनमें से एक का भी अभाव रहा तो राष्ट्र नहीं बनेगा।—पं.दीनदयाल उपाध्यायसहृदयता, बुद्धिमता, सक्रियता एवं अध्यवसायी वृत्ति वाले
डॉ. श्रीरंग गोडबोलेखिलाफत आंदोलन का अगस्त 1920 से मार्च 1922 तक का दूसरा चरण जोर-जबरदस्ती और नरसंहार का चरण था। हिंसक मुस्लिमों की भीड़ ने जगह-जगह उपद्रव किए। चौरीचौरा थाने में 21 पुलिस वालों को जिंदा आग के हवाले कर दिया गया फरवरी 1922, चौरीचौरा: उपद्रवियों की भीड़ द्वारा फूंका गया पुलिस वाहनखिलाफत और असहयोग आंदोलन आपस में जुड़े हुए थे, यह एक गलतफहमी है। असहयोग आन्दोलन भारत को स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया था, इस चर्चित विषय पर डॉ. आंबेडकर का विश्लेषण अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वे लिखते हैं,
डॉ. श्रीरंग गोडबोलेतत्कालीन कांग्रेस में कई ऐसे नेता थे जिन्हें खिलाफत आंदोलन को लेकर शुरू से ही शक था, लेकिन गांधी जी की अब्दुल बारी और अली बंधुओं जैसे मुस्लिम नेताओं से नजदीकी थी। वे चाहते थे कि गांधी जी अपने हिन्दू अनुयायियों को खिलाफत आंदोलन से जुड़ने को प्रेरित करें महात्मा गांधीसाधारणत: यह कहा जा सकता है कि अपनी शक्ति के क्षीण होने के पहले खिलाफत आन्दोलन दो चरणों में विभाजित था। पहला चरण (दिसम्बर 1918-जुलाई 1920) निवेदन और प्रोत्साहन का था। इसमें जनमत तैयार करना, संगठन बनाना प्रस्ताव पारित करना औ
हैदराबाद को भारत में शामिल कराना इतना आसान नहीं था और काफी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। सरदार पटेल साहब की गहरी समझ और सूझ बूझ के करण भारत का एक और विभाजन बच गया अगर नेहरू की बात मानी जाती तो भारत के लिये हैदराबाद एक और नासूर बन जाता
डॉ. श्रीरंग गोडबोलेभारत में तत्कालीन मुस्लिम मानस खुद को तुर्की के ज्यादा निकट देखता था। उस वक्त जो देश तुर्की से दुश्मनी पालते थे वे भारत के मुसलमानों के विरोध के निशाने पर आ जाते थे। भारत में खिलाफत आंदोलन का प्रारंभ वास्तव में नवंबर 1914 को माना जा सकता है, जब तुर्की ने ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध में प्रवेश किया 1917 के इस दुर्लभ चित्र में फिलिस्तीन में हार कर लौटते तुर्की सैनिकों का जत्थाप्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऐसी अनेक घटनाएं हुई थीं जिनके कारण भारत के मुस्लिमों का अखिल-इस्लामी चरित्र ब्रिटिश विर
प्रो़ रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’ हमारे यहां कुछ लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी क्लाईव और वारेन हेस्टिंग्स को शासक बताकर अक्षम्य अपराध कर रहे हैं। इन दोनों की करतूतें बताती हैं कि ये लोग छल-कपट में माहिर थे और इन्होंने भारतीयों के साथ-साथ लंदन में बैठे अपने आकाओं से भी झूठ बोला और मनमानी की पलासी की लड़ाई के बाद क्लाईव और मीर जाफर के बीच हुई बैठक का एक प्रतीकात्मक चित्र वस्तुत: जिसे पलासी का युद्ध कहते हैं, वह कोई युद्ध था ही नहीं। वह यह था कि सिराजुद्दौला के दीवान मोहनलाल से उसके ही अधी
यदि क्षेत्र, भाषा, कुनबे पर पलता और सामाजिक दरारों को गहरा करने वाला राजनैतिक फलक क्रूरता, कपट और हल्केपन की ऊंची लहरों में मदमत्त होता दिखे तो अटल जी के सदन-संदर्भ दिए जाते हैं। सियासत के समुद्र में राह दिखाने वाले अविचल प्रकाश स्तंभ थे अटल जी
आजादी के पहले के नेताओं द्वारा समाज की जो कल्पना हुआ करती थी उसे बनाए रखने का काम जो अटल जी ने किया वो आज से पहले देश के किसी भी नेता ने नहीं किया।
अजातशत्रु। जननायक। शिखर-पुरुष...कितने ही विशेषणों से संबोधित कर सकते हैं हम भारतीय राजनीतिक-साहित्यिक-सामाजिक जगत की महाविभूति मुदितमना अटल बिहारी वाजपेयी को
स्वतन्त्रता आन्दोलन में उग्रवाद के प्रणेता तिलक जी का मानना था कि स्वतन्त्रता भीख की तरह मांगने से नहीं मिलेगी। अतः उन्होंने नारा दिया - स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर ही रहेंगे
नितिन निचौड़ियारामजन्मभूमि स्थान अयोध्या में खुदाई में मिला शिवलिंग भी पुरा महादेव मंदिर के शिवलिंग के समान ही है। इससे साफ हो जाता है कि पुरा महोदव मंदिर, उत्तराखंड का महाभारतकालीन शिवलिंग और अयोध्या में निकला शिवलिंग एक ही सभ्यता की देन हैपश्चिमी उत्तर प्रदेश की धरती अपने भीतर कई महत्वपूर्ण रामायण, महाभारत समेत कई सभ्यताओं के अवशेष समाए हुए हैं। बागपत जनपद के सिनौली गांव में सिंधु घाटी सभ्यता के अद्भुत पुरावशेष मिल चुके हैं तो पुरा गांव स्थित परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में प्राचीन शिवलिंग स्थित है। इस सिद्
स्वामी विवेकानंद की '' एकता '' की अवधारणा अभी के दौर की सबसे बड़ी आवश्यकता है, हम सभी को मन से एक होना पड़ेगा
प्रो.हरिकेश सिंहसंघीय ढांचे को संविधान की अपेक्षा के अनुसार बनाये रखना राष्ट्रहित में है। यह संतोष की बात है कि गत कुछ वर्षोें से संघीय ढांचा पुन: दृढ़ हो रहा है, परन्तु विदेशी मानसिकता और संबद्धता के कारण इसको कमजोर करने वाली राजनीतिक शक्तियां इस ढांचे को हानि पहुंचा रही हैंभारत की संसद ( बाएं) द्वारा अंगीकृत संविधान के आरम्भ में प्रकाशित उद्देशिका (ऊपर)स्वतंत्रता एवं संविधान की प्राप्ति का महत्व कुछ लोग उत्तरोत्तर कम आंकते जा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है कि उन्होंने ठीक से भारत का समग्र इतिहास नहीं पढ़ा है।
नरेन्द्र सहगल आज विपक्षी नेता, खासकर कांग्रेसी कहते हैं, ‘‘मोदी सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है।’’ ऐसे नेताओं को आपातकाल के वे दिन याद करने चाहिए, जब इंदिरा गांधी ने सत्ता बचाने के लिए पूरे देश को बंधक बना लिया थाभारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून, 1975 को उस समय एक काला अध्याय जुड़ गया, जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक शिष्टाचार तथा सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर मात्र अपना राजनीतिक अस्तित्व और सत्ता बचाने के लिए
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून 1975 में उस समय एक काला अध्याय जुड़ गया, जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक शिष्टाचार तथा सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर मात्र अपना राजनीतिक अस्तित्व और सत्ता बचाने के लिए देश में आपातकाल थोप दिया
इलाहबाद हाईकोर्ट द्वारा सजा मिलने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक अस्तित्व और सत्ता को बचाने के उद्देश्य से जब 25 जून 1975 को रात के 12 बजे आपातकाल की घोषणा की तो देखते देखते पूरा देश पुलिस स्टेट में परिवर्तित हो गया। सरकारी आदेशों के प्रति वफ़ादारी दिखाने की होड़ में पुलिस वालों ने बेकसूर लोगों पर बेबुनियाद झूठे आरोप लगाकर गिरफ्तार करके जेलों में ठूंसना शुरू कर दिया।
25 जून, मोगा के नेहरू पार्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर आतंकियों ने हमला कर दिया था। इस दौरान 25 स्वयंसेवकों का बलिदान हो गया था, लेकिन अगले ही स्वयंसेवकों ने वहां फिर से शाखा लगाई और सबको दिखा दिया कि संघ के स्वयंसेवक अलग ही मिट्टी के बने होते हैं
श्यामाप्रसाद मुखर्जी शायद अपने दौर के उन नेताओं में से थे जिन्होंने बहुत कम उम्र में राष्ट्रीय राजनीति में स्थान बना लिया था। मात्र 46 वर्ष की आयु में वह स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री बने थे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक स्व. कुप्.सी. सुदर्शन भारतीय दर्शन के वाहक थे। वे प्रकृति के शोषण के विरोधी थे और कहते थे कि प्रकृति से उतना ही लो जितने की जरूरत है, तभी यह पृथ्वी समस्त जीवों की सेवा कर पाएगी- राजेंद्र कुमार चड्डाराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन का जन्म 19 जून, 1931 को रायपुर (वर्ततान में छत्तीसगढ़ राज्य) में हुआ था। वे मूल रूप से कर्नाटक के एक गांव कुप्पहल्ली के निवासी थे
पंडित रामप्रसाद का जन्म 11 जून , 1897 को शाहजहांपुर , उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता श्री मुरलीधर शाहजहाँपुर नगरपालिका में कर्मचारी थे। पर आगे चलकर उन्होंने नौकरी छोड़कर निजी व्यापार शुरू कर दिया। रामप्रसाद जी बचपन से महर्षि दयानन्द तथा आर्य समाज से बहुत प्रभावित थे। शिक्षा के साथ साथ वे यज्ञ , सन्ध्या वन्दन , प्रार्थना आदि भी नियमित रूप से करते थे।
झारखंड के अमर स्वाधीनता सेनानी और क्रांतिदर्शी बिरसा मुंडा को आज विभिन्न राजनीतिक दल, संगठन और समुदाय अपने-अपने ढंग से भले याद करते हों, लेकिन बड़ा कष्ट होता है यह जानकर कि इतने वर्षोें बाद भी बिरसा के बारे में कोई उपयुक्त प्रकाशित विवरण उपलब्ध नहीं है।
आंबेडकर के अथक प्रयासों से ही दामोदर वैली बिल को दिसंबर 1947 में संविधान सभा में लाया जा सका और फरवरी 1948 में पारित किया गया। दो-दो राज्यों व केन्द्र सरकार के बीच डॉ. आंबेडकर के अद्भुत कार्य निष्पादन से ही चार वर्ष से कम समय में यह प्रोजेक्ट पूरा हो सका
जाति प्रथा से नस्ल या प्रजाति में न सुधार हुआ है और न होगा। इससे एक बात अवश्य सिद्ध हुई है कि इससे हिन्दू समाज पूरी तरह छिन्न-भिन्न और हताश हो गया है।
संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने अपने देहान्त से पूर्व जिनके समर्थ कंधों पर संघ का कार्यभार सौंपा, वह थे श्री माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर, जिन्हें हम सब प्रेम से श्री गुरुजी कहकर पुकारते हैं। ‘परंम् वैभवम नेतुमेतत्वस्वराष्ट्रं’ यानी राष्ट्र को परम वैभव की ओर ले जाने के लिए संघ कार्य को अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले श्री गुरुजी की आज पुण्यतिथि है
छत्रपति शिवाजी जैसे आदर्श शासक और संगठक विश्व के इतिहास में दूसरे नहीं मिलते हैं। उन्होंने एक राजा के तौर पर निष्पक्ष शासन किया। आज हिंदू साम्राज्य दिवस है। आज ही के दिन शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। सन् 1674 में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था, जिसे आनंदनाम संवत् का नाम दिया गया। महाराष्ट्र में पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रायगढ़ किले में एक भव्य समारोह हुआ था। महाराष्ट्र में यह दिन "शिवा राज्यारोहण उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।
दलितोत्थान को लेकर आंबेडकरजी का दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट था। वे कहते थे, ‘दलितोन्नति का कार्य राष्ट्रकार्य है। देश के एक पंचमांष जनसमूह को विकलांग (सामाजिक रूढ़ि से) रखना देशहित और विकास में बाधक होगा
35,000 ग्रंथ खरीदे। हर ग्रंथ बारीकी से पढ़ा हुआ और हाशिए में टिप्पणी किया हुआ था। ग्रंथ तो मानो उनके बहिश्वर प्राण थे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए पं. मदनमोहन मालवीय जी ने इन ग्रंथों की मांग की थी। वे इन ग्रंथों के लिए मुंहमांगा दाम देने के लिए तैयार थे। उसे बड़ी नम्रता से अस्वीकार करते हुए बाबासाहेब ने कहा, ‘आप तो मानों मेरे प्राण ही मांग रहे हैं।
भारत प्रतिभा की धरती है, संपूर्ण भारत के प्रत्येक कोने में अनेक प्रतिभा संपन्न पुरुषों और महिलाओं ने जन्म लिया है और देश को एक नई दिशा प्रदान की है। 18वीं शताब्दी की ऐसी ही एक अद्भुत प्रतिभा संपन्न महिला थी देवी अहिल्याबाई होल्कर
गुरु अर्जुन देव ने सिख संगत को संबोधित करते हुए कहा था, - “संतों! आज के बाद तुम्हें दो नियम बदल देने हैं। पगड़ी बांधों और कमर में हर समय तलवार लटकाओ। गुरु गद्दी के स्थान पर अकाल तख्त की रचना करो
विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें हम सब वीर सावरकर कहते हैं वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। सशस्त्र क्रांतिकार्य के साथ—साथ पत्रकारिता, कविता, इतिहास, अस्पृश्यता निवारण, समाज सुधार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार प्रसार करने में उनका बड़ा योगदान था
वीर सावरकर के नाम से विख्यात विनायक दामोदर सावरकर की वीरता भारतभूमि में सर्वविख्यात है परंतु इससे भी अधिक वीरता का परिचय उन्होंने दुश्मन के गढ़ इंग्लैंड जाकर प्रदान किया था
बाबासाहेब का स्पष्ट मत था कि शिक्षा और समाज का एक अटूट रिश्ता है, क्योंकि शिक्षा ही समाज के सांस्कृतिक उन्नयन का आधार है। वे कहते हैं कि समाज अपना स्तर ऊंचा उठाने के लिए सामूहिक पद्धति से जो प्रयास करता है, वह शिक्षा है
निरक्षरता ने जनता को मानसिक दृष्टि से गुलाम, आर्थिक दृष्टि से दरिद्र, सांस्कृतिक दृष्टि से लूला-लंगड़ा और सामाजिक दृष्टि से पिछड़ा बना दिया। इसी वजह से समाज विदेशी आक्रामकों के विरुद्ध संघर्ष करने की ताकत खो बैठा है
भीमराव आंबेडकर 20वीं सदी में अर्थशास्त्र की एडवांस ट्रेनिंग करने वाले गिने-चुने विद्यार्थियों में एक थे। 20 जुलाई, 1913 से उन्होंने अमरीका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से अपनी पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई शुरू की थी
आंबेडकर के अनुसार देश में जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर हो रही खेती बड़ी समस्या है। इससे अधिकांश जमीन बेकार पड़ी रहती है व खाद्य आवक भी अपूर्ण होती है। इसके बदले आर्थिक व व्यावसायिक खेती को अपनाना चाहिए
जब जब धर्म के आचार उस धर्म के विचारों के विरोध में दिखाई देते हैं तब- तब धार्मिक आचारों में बदलाव कर उसे धार्मिक विचारों से सुसंगत कर लेना अत्यंत आवश्यक होता है
श्री अनिल माधव दवे, देश के उन चुनिंदा राजनेताओं में थे, जिनमें एक बौद्धिक गुरूत्वाकर्षण मौजूद था।उन्हें देखने, सुनने और सुनते रहने का मन होता था। पानी, पर्यावरण,नदी और राष्ट्र के भविष्य से जुड़े सवालों पर उनमें गहरी अंर्तदृष्टि मौजूद थी
समाज के अच्छे रहने के लिए समाज में नैतिक व्यवस्था होनी आवश्यक है। यह नैतिक व्यवस्था अच्छे या बुरे कर्मों से निर्मित होती है। कर्म का फल उस व्यक्ति को ही भुगतना पड़ता है ऐसा नहीं है; अपितु कभी-कभी पूरे समाज को उसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं
बच्चा स्कूल तभी छोड़े, जब वह साक्षर हो जाए और अपने शेष जीवन में साक्षर बना रहे: बाबासाहेब
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जितने भी हिंदू बचे हैं उनकी स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है। पाकिस्तान का हिस्सा बनने से पहले और मोहम्मद बिन कासिम द्वारा लूटे जाने से पहले सिंध अपना एक स्वर्णिम इतिहास रहा है
ऐसा प्रजातंत्र, जो श्रमिकों को अपना दास बना ले, उन्हें संगठन, शक्ति और बुद्घि से वंचित कर दे, तो मैं कहूंगा कि वह प्रजातंत्र नहीं बल्कि प्रजातंत्र का उपहास है।’ आज लोकतंत्र के माहौल में हम जिस दिशा में बढ़ रहे हैं, उस पर बाबासाहेब के राजनीतिक विचारों के परिप्रेक्ष्य में पुनर्विचार की आवश्यकता है
आत्मशुद्धि की सलाह दी थी। डॉ. बाबासाहेब ने बहिष्कार का शस्त्र प्रयुक्त किया। डॉ. आंबेडकर गांधीजी के दिए हुए हरिजन शब्द का निषेध कड़े शब्दों में किया और उसे नकारा
महाराणा प्रताप बप्पा रावल की उस परम्परा के प्रतिनिधि शूरवीर रहे हैं, जिन्होंने विदेशी भूमि से आए आक्रमणकारी आततायियों के सामने घुटने नहीं टेके
जाति-प्रथा से आर्थिक उन्नति नहीं होती: बाबासाहेब
धर्म रहेगा , धरती रहेगी , परन्तु शाही सत्ता सदा नहीं रहेगी। अपने भगवान पर भरोसा करके राणा ने अपने सम्मान को अमर कर लिया है। इस अमरत्व को प्राप्त करने के लिए प्रताप को केवल 57 साल का जीवन और 25 साल का राजकाल मिला। राजस्थान का गौरव सूर्य उगने से पहले ही कुम्हला गया और अपने जीवन के भरे मध्याह्न में जमीन से लग गया।
मुसलमान सुल्तानों की परम्परा के अनुसार टीपू ने एक आम दरबार में घोषणा की, 'मैं सभी काफिरों को मुसलमान बनाकर रहूंगा।' तत्काल ही उसने सभी हिन्दुओं को फरमान भी जारी कर दिया। टीपू ने अपने राज्य में लगभग 5 लाख हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया। हजारों की संख्या में कत्ल कराए। टीपू के शब्दों में, 'यदि सारी दुनिया भी मुझे मिल जाए, तब भी मैं हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने से नहीं रुकूंगा।(फ्रीडम स्ट्रगल इन केरल)।
धर्म का मार्ग मंगल है, पंचशील का मार्ग मंगल है। पंचशील का अनुकरण करें। हिंसा न करें। चोरी न करें। व्यभिचार न करें। झूठ न बोलें। मद्य आदि मादक पदार्थों का सेवन न करें
सभी धर्म समान और अच्छे होते हैं- ऐसा समझना गलत है और धोखा देने वाला है। धर्म एक संस्था और प्रभाव होता है। धर्म फलदायी या उपद्रवी हो- यह उस धर्म पर निर्भर करता है
धर्म का लक्ष्य न्याय और शांति ही होता है: बाबासाहेब
ब्रज बिहारी लाल एक ऐसे ही महान पुरातत्वविद हैं जो तक्ष शिला से लेकर हस्तिनापुर और अयोध्या तक मील का पत्थर मणी जाने वाली पुरातात्विक खोजों के लिए प्रसिद्ध हैं
समाज परिवर्तन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा द्वारा समाज परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होता है। बाबासाहेब कहते हैं कि परिवर्तन की इस प्रक्रिया को गति देने के लिए समाज मानस में परिवर्तनवादी विचार दृढ़ होना आवश्यक है
अध्यापक को बहुश्रुत होना आवश्यक है, उसे अपने विचारों का विन्यास अच्छी तरह से करना जरूरी है, अपने और दूसरों के विचार जांचना जरूरी है, तभी वे छात्रों को अध्ययन करने तथा विचार करने के लिए प्रवृत्त कर सकेंगे
बाबासाहेब मूल्य शिक्षा पर बल देते हुए कहते थे कि विद्या, विनय, शील और कड़ा अनुशासन सब कुछ छात्रों को आत्मसात करना चाहिए। विद्या के साथ शील चाहिए क्योंकि शील के बिना विद्या व्यर्थ है
बाबासाहेब ने शिक्षा में सहशिक्षा का पक्ष लिया है। उन्होंने कहा है कि स्त्रियों को पुरुषों की बराबरी में एक साथ शिक्षा प्राप्त हो। वे तर्क देते हैं कि स्त्रियों के साथ रहकर भी जो पुरुष अपना मन काबू में रखते हैं और पुरुषों के संग में रहकर भी जो स्त्रियां अपना पांव न फिसले, इस बारे में सजग रहती है
पाठशाला के छात्रों के मन को समाजहित के लिए मोड़ देना चाहिए। पाठशाला उत्तम नागरिक बनाने का कारखाना है। अर्थात् इस कारखाने में फोरमैन जितना कुशल होगा, कारखाने में उतना अच्छा माल तैयार होगा।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में मुस्लिम आक्रांता हिंदुओं के खिलाफ घृणा का राग गाते हुए आए थे। उन्होंने न केवल घृणा ही फैलाई, बल्कि वापस जाते हुए हिंदू मंदिर भी जलाए। उनकी नजर में यह एक नेक काम था
समता के बिना स्वतंत्रता निरर्थक है: बाबासाहेब
''सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों की उपेक्षा को मैं कई वर्षों से देख रहा था। एक अवसर पर मैंने एक सार्वजनिक सभा में भी अपनी भावना व्यक्त कर दी।
मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या मुसलमान अकेले हैं जिन्हें ही केवल सुरक्षा की जरूरत है। क्या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और भारतीय ईसाइयों को सुरक्षा की जरूरत नहीं है।
आधुनिक समय में जहां एक ओर बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को ज्ञान का प्रतीक (Symbol of knowledge) माना जाता है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दुनिया इसके सेवा-कार्य, प्रबल राष्ट्रभक्ति और समर्पण के लिए जानती है
समाज को समरसता के सूत्र में पिरोकर उसे संगठित और सशक्त बनाने वाले महानायकों में से एक डॉ. भीमराव आंबेडकर भी संघ के प्रणेता डॉ. हेडगेवार के संपर्क में थे। बाबा साहेब 1935 और 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में गए थे। 1937 में उन्होंने कतम्हाडा में विजयादशमी के उत्सव पर संघ की शाखा में भाषण भी दिया था
अब मैं उस दूसरे मामले का संदर्भ देना चाहूंगा जिसने मुझे सरकार के प्रति असंतुष्ट बनाया, वह था पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों से जुड़ा भेदभावपूर्ण व्यवहार। मुझे इस बात का बहुत दुःख है संविधान में इन जातियों की सुरक्षा के लिए कुछ विशेष तय नहीं किया गया
क्या यह विश्वास है? क्या यह मित्रता है? या क्या यह लचरता है ? मुझे कभी भी कैबिनेट की प्रमुख समितियों, जैसे विदेश मामलों की समिति अथवा रक्षा समिति, का सदस्य नहीं चुना गया। जब आर्थिक मामलों की समिति का गठन हुआ तो प्राथमिक रूप से अर्थशास्त्र का छात्र होने के नाते मुझे आशा थी कि इस समिति का सदस्य मुझे नियुक्त किया जाएगा, लेकिन मुझे बाहर रखा गया
ये वैसा ही दु:साहस था जैसे नरभक्षी को धर्मोपदेश देना या आज के संदर्भ में उदाहरण लें तो दुर्दांत आतंकी संगठन आईएसआईएस की मांद में जाकर यह कहना कि तुम जिस रास्ते चल रहे हो वह उचित नहीं। लेकिन हिंद की चादर कहाए जाने वाले गुरु तेगबहादुर ने यह बड़े सहजभाव से किया
हिन्दुस्थान को सजातीय बनाने का एक ही रास्ता है कि जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो, जब तक यह नहीं किया जाता तब तक यह स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी, बहुसंख्यक की समस्या बनी रहेगी। हिन्दुस्थान में मुसलमान पहले की तरह ही बचे रहेंगे और हिन्दुस्थान की राजनीति में हमेशा बाधाएं पैदा करते रहेंगे
डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती (14 अप्रैल) के अवसर तक रोजाना उनके जीवन से जुड़े कुछ अनछुए प्रसंगों को बताने का प्रयास किया जाएगा। ये प्रसंग “डॉ. बाबासाहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज”, “पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया”, “द सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ डॉ. बी. आर. आंबेडकर”, “द डिक्लाइन एंड फॉल ऑफ़ बुद्धिज़्म” आदि पुस्तकों से लिए गए हैं. बाबासाहेब को जानें भाग नौ
पुणे ओर उसके आस-पास के क्षेत्र में ज्योतिबा ने 18 विद्यालयों की स्थापना की थी। फुले स्वयं बहुत ज़्यादा शिक्षा नहीं ग्रहण कर पाए थे परन्तु समाज को शिक्षा का समुचित बोध हो, इसका उनको सदैव स्मरण रहा
मुसलमान आक्रांताओं ने बौद्ध अर्चकों व भिक्षुओं में कत्लेआम का अभियान चलाया। मुसलमानों की इस खूनी कुल्हाड़ी ने बौद्ध मत की जड़ पर प्रहार किया। बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करके इस्लाम ने बौद्ध मत को ही मार दिया