हामिद अंसारी जैसे लोग जो भारत को मुसलमानों के लिए असुरक्षित बताते हैं, उन्हें अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से देशभक्ति सीखनी चाहिए। राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में उन्होंने कहा कि उन्हें हिन्दुस्थानी मुसलमान होने पर गर्व है
9 फरवरी को कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद राज्यसभा से सेवानिवृत्त हुए। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद के अनुभव की खूब प्रशंसा की
राज्यसभा से अपनी सेवानिवृत्ति के अवसर पर गुलाम नबी आजाद ने सदन में जो भावुक भाषण दिया, उसके बाद पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी संभवत: स्वयं को अपराधबोध के बोझ तले दबा महसूस कर रहे होंगे। यह भी हो सकता है कि अंसारी को लग रहा हो कि उन्होंने भारत के मुसलमानों की स्थिति पर हाल में जो वक्तव्य दिए थे, शायद उचित नहीं थे। राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘‘मुझे इस बात का फख्र है कि मैं हिन्दुस्थानी मुसलमान हूं। मैं उन खुशकिस्मत लोगों में हूं जो पाकिस्तान कभी नहीं गए। जब मैं देखता हूं कि पाकिस्तान में किस तरह के हालात हैं तो मुझे अपने हिन्दुस्थानी होने पर फख्र होता है।’’ दूसरी ओर, हामिद अंसारी बार-बार यही रोना रोते रहते हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हो रहा है। वे डर के साए में जी रहे हैं। अगर उनका जमीर जिंदा है तो वे साबित करें कि जो गुलाम नबी आजाद ने कहा वह गलत है। आजाद ने कहा कि आज विश्व में अगर किसी मुसलमान को गर्व होना चाहिए तो वे हैं हिन्दुस्थान के मुसलमान। उन्होंने कहा कि राज्यसभा में जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भावुक होकर मेरे बारे में कुछ शब्द कहे, उससे मैं सोच में पड़ गया कि मैं कहूं तो क्या कहूं?’’
तब क्यों चुप थे अंसारी?
भारतीय विदेश सेवा की मलाईदार और मौज-मस्ती वाली नौकरी के बाद हामिद अंसारी लगातार दो बार उपराष्ट्रपति रहे। जब तक वह इस कुर्सी पर रहे, उन्होंने सरकार के विरुद्ध एक बार भी कुछ नहीं कहा। लेकिन जैसे ही उन्हें तीसरी बार उपराष्ट्रपति नहीं बनाया गया, रातों-रात वह मुस्लिम नेता बन गए! उनका आचरण सच में निंदनीय ही रहा। अगर वे मौजूदा सरकार की नीतियों से इतने ही दुखी हैं तो फिर लुटियन दिल्ली में मिले भव्य सरकारी बंगले को छोड़ क्यों नहीं देते? वे यह तो कभी नहीं करेंगे। सुविधाएं छोड़ना हर किसी के वश में नहीं होता। अंसारी तो सुविधाभोगी हैं। हालांकि बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर शायद एकमात्र ऐसे नेता रहे, जिन्होंने अपना सरकारी पद छोड़ने के अगले ही दिन लुटियन दिल्ली का बंगला छोड़ दिया था। बाबासाहब ने 1951 में जवाहरलाल नेहरू सरकार के मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के अगले ही दिन 22 पृथ्वीराज रोड स्थित अपना सरकारी आवास खाली कर दिया था। उसके बाद वे पत्नी के साथ 26, अलीपुर रोड चले गए थे। हामिद अंसारी जैसा इनसान कभी बाबासाहब के रास्ते पर चल ही नहीं सकता।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने अपने भाषण में कहा कि वे ऐसे कॉलेज में पढ़े, जहां ज्यादातर छात्र 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस ही मनाते थे। उन्होंने कहा, ‘‘मैं जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े कॉलेज एसपी कॉलेज में पढ़ता था। वहां 14 अगस्त (पाकिस्तान की आजादी का दिन) भी मनाया जाता था और 15 अगस्त भी। वहां ज्यादातर वैसे छात्र थे, जो 14 अगस्त मनाते थे और जो लोग 15 अगस्त मनाते थे, उनमें मैं और मेरे कुछ दोस्त थे। हम प्रिंसिपल और स्टाफ के साथ रहते थे। इसके बाद हम दस दिन तक कॉलेज नहीं जाते थे, क्योंकि वहां जाने पर पाकिस्तान समर्थकों द्वारा हमारी पिटाई होती थी। मैं उस स्थिति से निकलकर आया हूं। मुझे खुशी है कि कई पार्टियों के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर आगे बढ़ा।’’ जाहिर है, कश्मीर घाटी में भी आजाद तिरंगा लहराते रहे। इसमें कोई शक नहीं है कि गुलाम नबी आजाद बनने के लिए दशकों की मेहनत तो लगती ही है।
यादगार 9 फरवरी, 2021
बेशक 9 फरवरी, 2021 भारतीय संसद के उच्च सदन के लिए यादगार दिन रहा। जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तनातनी हो और संसद राजनीति का अखाड़ा बना हो, वहां गुलाम नबी आजाद की विदाई के मौके पर प्रधानमंत्री ने जो भाषण दिया, वह भारतीय राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच संबंधों को लेकर एक संकेत भी है और संदेश भी। जानने वाले जानते हैं कि आजाद जी किस मिट्टी के बने हैं। उन्होंने ‘उछल-कूद’ की राजनीति कभी नहीं की और न कभी करेंगे। प्रधानमंत्री ने उनके बारे में जो भी कहा, वह गुलाम नबी आजाद की बेहतरीन संवाद क्षमता, व्यवहार, शालीनता और मर्यादित राजनीति को लेकर है। वे संसद में अनूठी छाप छोड़ने वाले नेताओं में से हैं और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी अलग पहचान है। करीब पांच दशकों के अपने सार्वजनिक जीवन में आजाद अनेक बड़े दायित्वों से बंधे रहे। उनका संबंध किसी राजनीतिक खानदान से नहीं है। आजाद की राजनीति जमीनी स्तर पर 1973 में जम्मू-कश्मीर में एक ब्लॉक से आरंभ हुई और अपनी प्रतिभा के बल पर ही वे 1975 में जम्मू-कश्मीर युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1980 में सातवीं और फिर आठवीं लोकसभा के सदस्य रहने के अलावा आजाद पांच बार राज्यसभा सदस्य रहे। वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे और कई विभागों की जिम्मेदारी संभाली। इसके अलावा, नवंबर 2005 से जुलाई 2008 के दौरान जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में शानदार कामकाज करके उन्होंने तमाम विरोधियों का मुंह भी बंद किया। उनकी यही खासियत, बाकी कांग्रेसियों से उन्हें अलग करती है।
एक मुंबइया अभिनेता नसीरुद्दीन शाह भी हामिद अंसारी की तरह ही हैं। नसीरुद्दीन शाह को भी भारत में डर लगता है। भारत के करोड़ों सिनेमा प्रेमियों ने उन्हें भरपूर प्रेम दिया, उन्हें पद्म सम्मान भी मिला, फिर भी उन्हें भारत से शिकायतें हैं। उन्हें तब डर नहीं लगा था, जब मुंबई में 26/11 को आतंकी हमला हुआ था। जब कश्मीर में हिन्दुओं का खुलेआम कत्लेआम हो रहा था, तब अंसारी और नसीरुद्दीन शाह जैसों की जुबानें सिल गई थीं। इनके जैसे फर्जी लोग गुलाम नबी आजाद का भाषण सुनने के बाद उन्हें पानी पी-पीकर कोस रहे होंगे। इन जैसों को आजाद ने कहीं का नहीं रहने दिया। फिलहाल तो आजाद ने अपनी बातों से इनकी जुबान ही बंद कर दी है।
भारत को अभिनेता इरफान खान और अजीम प्रेमजी जैसे राष्ट्र भक्त मुसलमानों पर गर्व है। भारत के डीएनए में ही परम्परागत पंथनिरपेक्षता है। यह तथ्य हामिद अंसारी जैसे लोग स्वार्थवश भूल जाते हैं। उन्हें गुलाम नबी आजाद जैसे जमीनी नेताओं से सीख लेनी चाहिए। देश को गुलाम नबी आजाद जैसे सच्चे और अच्छे नेताओं की जरूरत हमेशा रहेगी।
(लेखक राज्यभा के पूर्व सांसद हैं)
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