प्रदीप सरदाना
दूसरी लहर का कहर थमा भी नहीं कि ब्लैक फंगस के बढ़ते मरीजों के चलते देश में एक अलग डर का माहौल बना हुआ है। फंगस के संक्रमण को लेकर घबराहट और चिंता की बात यह है कि यह संक्रमण उन्हीं लोगों को सर्वाधिक हो रहा है जो कोरोना से स्वस्थ हो रहे हैं या स्वस्थ हो चुके हैं। यानी वे कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से लड़कर जैसे-तैसे ठीक तो हो गए, लेकिन फंगस के इस नए चक्रव्यूह में फंस गए।
इधर एक नई उलझन यह है कि पहले यह फंगस ब्लैक फंगस के रूप में सामने आया था, फिर व्हाइट फंगस के रूप में। कुछ दिन पहले, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में तो येलो फंगस का मामला सामने आने से यह रोग और भी उलझाता दिख रहा है। साथ ही, हाल ही में इंदौर के 34 वर्षीय युवा विशाल श्रीधर के ग्रीन फंगस से संक्रमित होने का मामला आने से फंगस का भ्रमजाल और गहरा गया है। चिकित्सक और वैज्ञानिक फंगस के इन विभिन्न रंगों का आकलन चाहे कैसा भी करें, लेकिन फंगस के रंगों की इस दुनिया को देख, आमजन या कोई फंगस संक्रमित व्यक्ति और उसके संबंधियों के चेहरों के रंग बुरी तरह उड़ गए हैं। यूं देश में सर्वाधिक मामले ब्लैक फंगस के ही हैं जिसे चिकित्सीय भाषा में म्यूकरमाइकोसिस कहा जाता है। सभी फंगस को एक ही समूह ‘फंजाई’ का हिस्सा माना जाता है।
मृत्यु दर अधिक होना बढ़ा रहा भय
अभी तक दुनिया ने जितनी भी महामारियां देखी हैं उनमें कोरोना सबसे खतरनाक साबित हुई है। एक ऐसा नया संक्रमण जिसने पूरी दुनिया ही बदल दी। लेकिन इस सबके बावजूद म्यूकरमाइकोसिस, कोविड 19 से कहीं ज्यादा खतरनाक इसलिए है क्योंकि इससे संक्रमित होने पर सामान्यत: मृत्यु दर 50 प्रतिशत मानी जाती रही है। जबकि कोरोना होने पर विश्व भर में औसत मृत्यु दर अधिकतम 2 प्रतिशत रही है। इसलिए यह बात कंपकपा देती है कि यदि 100 व्यक्ति म्यूकरमाइकोसिस से ग्रस्त हो जाते हैं तो उनमें से 50 व्यक्तियों की मृत्यु हो सकती है। जबकि 100 लोगों के कोरोना संक्रमित होने पर अधिकतम 2 व्यक्तियों की मृत्यु हो सकती है। साथ ही चिंताजनक बात यह है कि म्यूकरमाइकोसिस शरीर के कुछ अंगों को भी भारी क्षति पहुंचा देता है।
राहत की बात, यह संचारी रोग नहीं
फंगस के मामले में एक बड़ी राहत की बात यह है कि म्यूकरमाइकोसिस चाहे कितना ही खतरनाक हो, लेकिन यह कोई संचारी रोग अर्थात कम्युनिकेबल डिसीज नहीं है। यानी यह कोरोना की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता।
फिर भी कोरोना की दूसरी लहर के बाद म्यूकरमाइकोसिस देश भर में जिस तरह अपने पांव पसारता जा रहा है, वह बेहद चिंताजनक है। शुरू में म्यूकरमाइकोसिस के मामले महाराष्ट्र और फिर गुजरात तथा राजस्थान में ज्यादा दिखे। लेकिन बाद में देश की राजधानी दिल्ली सहित एक-एक करके कई राज्यों से ब्लैक फंगस के बढ़ते मामले सामने आने से सनसनी फैल गई।
फंगस के इस प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार ने एपिडेमिक डिसिसिज एक्ट 1897 के अंतर्गत राज्यों को म्यूकरमाइकोसिस को ‘नोटिफाइबल डिसिज’ घोषित करने के लिए कहा। राजस्थान सरकार ने इसमें पहल की, अब तो अधिकतर राज्य इसे महामारी घोषित कर चुके है। इसमें राज्यों के सभी सरकारी-गैरसरकारी अस्पतालों को म्यूकरमाइकोसिस के सभी रोगियों के केस दर्ज कराने होते हैं, जिससे राज्यवार उनकी स्थिति स्पष्ट होती रहे। फिर इन्हीं आंकड़ों को देख कर समीक्षा, राहत और उपचार की व्यवस्था तथा अन्य योजनाओं की रूपरेखा निर्धारित की जा सकती है।
अभी तक 32,000 हजार मामले
देश में इस साल मई के शुरू में ब्लैक फंगस के मामले सामने आने शुरू हुए थे। 15 मई के आसपास ही, 3 से 4,000 मामले सामने आए थे। इसके एक सप्ताह के बाद 21 मई को देश में ब्लैक फंगस के मामलों की संख्या 7,250 हो गई और इनमें से 219 व्यक्तियों की मौत भी हुई। इससे खतरे की बड़ी घंटी साफ सुनाई देने लगी। ब्लैक फंगस से संक्रमित इन 7,250 व्यक्तियों में अकेले महाराष्ट्र में 1,500 रोगी थे और वहां मौत का आंकड़ा 100 हो गया था। महाराष्ट्र के बाद गुजरात में 1,163, मध्यप्रदेश में 574, हरियाणा में 268 और दिल्ली में 203 व्यक्ति ब्लैक फंगस का शिकार हो चुके थे। इसी के चलते गुजरात में 61, मध्यप्रदेश में 31, हरियाणा में 8 और दिल्ली में एक व्यक्ति की मौत हो गई।
तब यह माना जा रहा था कि ब्लैक फंगस के ये मामले 10,000 से ज्यादा हो सकते हैं। लेकिन इन मामलों में जिस तरह लगातार बढ़ोतरी हो रही है, उससे चिंता और भय बढ़ता जा रहा है। ब्लैक फंगस का मकड़जाल किस गति से बढ़ रहा है, उसका अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि गत 4 जून को देश भर में इस फंगस के 26,912 मामले भारत सरकार के पोर्टल पर दर्ज हो गए थे। जबकि एक सप्ताह के भीतर ही 10 जून को यह संख्या बढ़कर 31,525 हो गई।
हालांकि इस बात पर हम थोड़ा संतोष कर सकते हैं कि ब्लैक फंगस में मृत्यु दर प्रतिशत जिस तरह 50 प्रतिशत आंका जा रहा है, गनीमत है कि उस हिसाब से हमारे देश में यह दर अभी कम है। गत 4 जून के सरकारी आंकड़ों में, जहां कुल 26,912 मामलों में 21,629 व्यक्ति उपचाराधीन थे, वहीं 3,452 लोग इस महामारी से ठीक हो गए। लेकिन इनमें से कुल 1,618 रोगियों को इससे अपनी जान गंवानी पड़ी। फिर 10 जून के भारत सरकार के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार, कुल संक्रमित 31,525 व्यक्तियों में से 24,329 का उपचार चल रहा था। जबकि 4,643 व्यक्ति सौभाग्यशाली रहे कि ठीक हो गए। लेकिन 2124 व्यक्ति ऐसे भी रहे जो असमय काल का ग्रास बन गए।
मृत्यु दर 6 से 7 प्रतिशत
इन अधिकृत आंकड़ों का प्रतिशत निकाला जाए तो 4 जून के आंकड़ों के अनुसार कुल रोगियों में से 12.82 प्रतिशत व्यक्ति उपचार से स्वस्थ हो गए, लेकिन 6.01 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। ऐसे ही 10 जून के आंकड़ों के अनुसार, 14.72 प्रतिशत व्यक्ति म्यूकरमाइकोसिस से ठीक हो गए, पर 6.73 प्रतिशत लोगों का निधन हो गया। यह प्रतिशत बताता है कि ब्लैक फंगस के मामले में आंकलित 50 प्रतिशत दर से चाहे ये काफी कम हैं, लेकिन कोरोना की मृत्यु दर के मामले में ये 3 से 4 गुना अधिक हैं, क्योंकि कोरोना में हमारे यहां मृत्यु दर एक से दो प्रतिशत के बीच रही है।
ब्लैक फंगस के इन आंकड़ों पर गौर करें तो एक बात और सामने आती है। वह यह कि 4 जून और 10 जून के आंकड़े दर्शाते हैं कि इन 6 दिनों में ठीक होने वाले व्यक्तियों का प्रतिशत जहां 1.9 प्रतिशत यानी करीब करीब 2 प्रतिशत बढ़ा है वहीं मृत्यु दर में भी .72 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अब ये मामले और आंकड़े आगे क्या रूप लेते हैं, यह तो आगे पता लगेगा। लेकिन फिलहाल चिंता यह है कि 10 जून तक म्यूकरमाइकोसिस के ये मामले अब देश के 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहुंच चुके हैं।
महाराष्ट्र की स्थिति सबसे खराब
इन 28 राज्यों में सबसे खराब स्थिति महाराष्ट्र की है जहां 10 जून को सर्वाधिक 7,057 ब्लैक फंगस के रोगी थे। उधर महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से मिले इस समाचार ने तो अच्छे-अच्छों के होश उड़ा दिये हैं कि ब्लैक फंगस के कारण तीन बच्चों की एक एक आंख निकालनी पड़ी। इन बच्चों की उम्र मात्र 4 साल, 6 साल और 14 साल है। ये तीनों बच्चे कोरोना से ठीक हुए ही थे कि ब्लैक फंगस से संक्रमित हो गए। इसके चलते इन मासूमों को अपनी आंख गंवानी पड़ी।
जबकि फंगस के सर्वाधिक मामलों में दूसरे नंबर पर गुजरात और तीसरे पर राजस्थान है, जहां क्रमश: 5,418 और 2,976 मामले दर्ज हुए हैं। ऐसे ही चौथे नंबर पर कर्नाटक है जहां ब्लैक फंगस के 2,567 रोगी हैं और पांचवें पर आंध्र प्रदेश, जहां इसके 2,139 रोगी हैं।
ब्लैक फंगस के मामलों में इन 5 राज्यों के बाद जिन अन्य राज्यों में म्यूकोरमाइकोसिस के मामले एक हजार से ज्यादा हैं उनमें मध्यप्रदेश में 1,851, उत्तर प्रदेश में 1,744, तमिलनाडु में 1,293, हरियाणा में 1,243, तेलंगाना में 1,222 और दिल्ली में 1,200 रोगी हैं। इनके अतिरिक्त फंगस की जड़ें जिन राज्यों—केन्द्र शासित प्रदेशों में पहुंच चुकी हैं, वे हैं—पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, केरल, जम्मू-कश्मीर, पुडुचेरी, असम, गोवा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा।
केंद्र सरकार के प्रयास से काबू में स्थिति
जिस तरह कोरोना की दूसरी लहर के दौरान, देश में विभिन्न कारणों से कुछ दिनों के लिए स्थितियां नाजुक हो गई थीं, उसे देख कुछ लोग आशंकित थे कि ब्लैक फंगस रोग के चलते भी स्थितियां बेकाबू हो सकती हैं। यह आशंका इसलिए भी थी क्योंकि म्यूकरमाइकोसिस की प्रमुख दवा एंफोटेरेसिन का उत्पादन भारत में बंद होने से इस इंजेक्शन की उपलब्धता बहुत कम थी। लेकिन भारत सरकार ने विकट स्थिति को देखते हुए तत्काल प्रभावशाली कदम उठाए। इसका घरेलू उत्पादन बढ़ाने के साथ ही अधिक मात्रा में आयात के तत्काल प्रबंध कर दिए गए। साथ ही इस दवा की सभी राज्यों में उनकी आवश्यकता के अनुसार आपूर्ति के लिए, केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री सदानंद गौडा ने बेहतरीन व्यवस्था की। उधर इसके रोगियों के लिए अस्पतालों में बिस्तर और डॉक्टरों की कमी न पड़े, इसके लिए भी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने युद्ध स्तर पर कार्य किया। तभी ब्लैक फंगस के रोगियों के ठीक होने के मामलों में बढ़ोतरी हुई और मौतों के मामलों में कमी।
इस संबंध में जब हमने डॉ. हर्षवर्धन से बात की तो वे बोले-‘‘कोरोना की दोनों लहर के अनुभवों को देखते हुए हमने हर स्तर पर ऐसे प्रबंध किए हैं कि जिससे स्थिति नियंत्रण में रहे। म्यूकरमाइकोसिस के लिए भी हमारी सरकार ने शुरू में ही ऐसे समस्त प्रबंध और उपाय कर लिए थे जिससे समस्या का समाधान और रोग का निदान समय रहते हो सके।’’
अचानक कैसे आया यह फंगस
अब बात इस पर हैं कि यह फंगस अचानक कैसे इतना खतरनाक बनकर उभरा कि लोगों की नींद उड़ गई। असल में यह फंगस कोरोना की तरह कोई नया संक्रमण या नया रोग नहीं है। यह सदियों से चला आ रहा है। हम अपने घरों में दीवारों पर सीलन की जगहों, बासी सब्जियों, रोटियों, ब्रैड और मिठाइयों तक में कई बार देखते हैं कि फंगस आ जाती है। ऐसे ही शरीर में भी किसी बाहरी हिस्से में फंगस दिखाई दे जाती है। देखा जाये तो दाद, खाज और खुजली भी फंगस ही हैं। लेकिन यह शरीर के बाहरी हिस्से में होने के कारण सामान्य दवा या मलहम से ठीक हो जाती है।
दिल्ली के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अचल एस. दवे बताते हैं, ‘‘फंगस के विभिन्न रूप सैकड़ों वर्षों से हैं। मैं 40 साल पहले जब लंदन में था तब भी फंगस के मामले कभी-कभार आ जाते थे। लेकिन इस बार कोरोना और उसके उपचार के दुष्परिणाम के रूप में यह अचानक विकराल रूप लेकर सामने आया है। हमारे शरीर में यूं सामान्यत: इतनी प्रतिरोधक क्षमता होती है कि फंगस के प्रभाव को बढ़ने नहीं देती। लेकिन अभी जो यह ब्लैक फंगस इतना अधिक फैला है, वह उन्हीं लोगों में देखा जा रहा है जो कोरोना के कारण अस्पताल में भर्ती रहते हुए एक हफ्ते तक आईसीयू में वेंटिलेटर पर रहे या हफ्ते से ज्यादा समय तक स्टीरॉयड लेते रहे। लेकिन इस तरह के रोगियों में भी ब्लैक फंगस उन्हीं में देखने को मिला जिनका मधुमेह स्तर काफी ज्यादा रहता है। या फिर जो कैंसर जैसी बड़ी बीमारी से भी लड़ रहे थे या वे लोग जिनका लीवर, किडनी या दिल प्रत्यारोपित हुआ हो। इस सबके साथ कोरोना होने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इतनी कम हो जाती है कि फंगस शरीर में प्रवेश कर सायनस, फेफड़ों, आंखों, नाक और मुंह, यहां तक दिमाग को भी बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।’’
कोरोना और फंगस पर लगातार वक्तव्य देने वाले एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया कहते हैं, ‘‘यह देखा जा रहा है कि कोरोना के दौरान जिन लोगों को शुगर की बीमारी नहीं थी या जिनको ज्यादा स्टेरॉयड नहीं दिया गया उनमें म्यूकरमाइकोसिस बहुत ही कम पाया गया। इसलिए जो लोग कोविड संक्रमण के साथ अनियंत्रित डायबिटीज के शिकार हैं और जो स्टेरॉयड ले रहे हैं वे ही ज्यादा जोखिम में हैं।’’
फंगस के अलग-अलग रंगों पर डॉ. गुलेरिया कहते हैं-‘‘इसके अलग-अलग रंगों के अनुसार नाम देने से भ्रम बढ़ता है। इसे ब्लैक फंगस नाम देना भी सही नहीं। असल में कोविड19 के बाद जो फंगस देखा गया है वह म्यूकरमाइकोसिस ही है। हां, कभी एस्परगिलोसिस या कभी कुछ लोगों में कैंडिडा भी दिखता है। ये तीनों फंगस ज्यादातर कमजोर इम्यूनिटी वालों में ही मिलते हैं।’’डॉ गुलेरिया के अनुसार, कैंडिडा फंगस का संक्रमण मुंह, मुंह के अंदर के हिस्सों और जीभ पर सफेद धब्बों के रूप में सामने आता है। यह शरीर के अंगों को भी संक्रमित कर कभी काफी खतरनाक बन जाता है।
ब्लैक फंगस नाम क्यों?
नोएडा के जेपी अस्पताल के कान, नाक, गला विशेषज्ञ डॉ. (कर्नल) सुबोध कुमार बताते हैं-‘‘ब्लैक फंगस इसलिए ज्यादा खतरनाक है कि यह रक्त वाहिकाओं में पहुंच जाती है। रक्त प्रवाह में बाधा आने से रक्त प्रवाह बंद हो जाता है। जहां खून पहुंचना बंद हो जाएगा वह तंतु काला हो जाता है। इसलिए इसका नाम ब्लैक फंगस है। वैसे इस फंगस का रंग काला नहीं, भूरा या सलेटी होता है। ऐसे ही इस संक्रमण में नाक से बहने वाला पानी भी काला नहीं होता। लेकिन यह फंगस जहां भी होगा उस जगह को सुखा देगा, इससे वहां काले धब्बे हो जाएंगे। सूखने के बाद यह फंगस जिस जगह को गला देता है, उस हिस्से को काटना पड़ता है।’’ डॉ. सुबोध कुमार यह भी बताते हैं-‘‘यह फंगस कोरोना से ज्यादा खतरनाक इसलिए भी है कि यदि इसे सही समय पर नहीं पहचाना और इसके इलाज में देरी हो जाए तो इससे जान जाने का खतरा बहुत बढ़ जाता है। साथ ही शरीर के किसी हिस्से को काटने की स्थिति भी बन जाती है। इसलिए नेजल एंडोस्कोपी जैसे आसान परीक्षण कराके इसकी जल्द पहचान की जा सकती है। यदि उसमें फंगस मिलता है तो फिर फंगस कहां कहां फैला है यह जानने के लिए एमआरआई करानी पड़ती है।’’
क्या हैं इसके लक्षण
डॉ. अचल एस. दवे बताते हैं-‘इसके प्रमुख लक्षण हैं नाक का बंद होना, नाक से खून आना या दुर्गंध आना। नाक से हरे या किसी गहरे रंग का तरल पदार्थ निकलना। या फिर चेहरे, आंखों या पलकों पर सूजन या सिर दर्द बढ़ना। ऐसे ही सायनस की तकलीफ के साथ आंख, नाक या फिर दांत में दर्द भी इसके प्रमुख लक्षणों में से हैं। कई बार फंगस का प्रकोप बढ़ने पर चेहरा सुन्न हो जाता है, कम दिखाई देने लगता है या फिर आंखों की रोशनी तक चली जाती है। कभी-कभी तो कोई वस्तु टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है। यहां तक कि इस फंगस के कारण कभी बुखार या शरीर के किसी हिस्से को लकवा मारने जैसी भयंकर स्थिति भी हो जाती है।
विदेशों में भी पहुंचा फंगस रोग
कुछ लोग फंगस को लेकर कहते हैं कि यह रोग हमारे देश में ही क्यों है या यह कोरोना की पहली लहर में क्यों नहीं आया? बता दें कि फंगस के मामले विदेशों में भी सामने आ रहे हैं। कुछ विदेशी तो फंगस के उपचार के लिए हमारे देश में ही आ रहे हैं। कोरोना की पहली लहर में भी फंगस के मामले आए थे लेकिन तब वे ज्यादा नहीं थे। यूं भी कोरोना काल से पहले भी सभी बड़े अस्पतालों में फंगस के मामले कभी-कभार आते ही रहे हैं।
कैसे करें बचाव
चिकित्सकों के अनुसार, पहला सुझाव सही है कि मधुमेह को नियंत्रित करें। साथ ही नियमित भाप लेने के साथ नाक और मुंह की सफाई प्रमुख उपाय है। इसके लिए सुबह और रात दो बार ब्रश करके अच्छे से दांत साफ करें। गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारे करने या फिर बीटाडीन से कुल्ला करने से भी फंगस से काफी हद तक बचा जा सकता है।
इसके अलावा घर में साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने के साथ अगर कहीं सीलन है तो उसे भी ठीक कराएं। चेहरे पर गीला मास्क कभी न पहनें। बासी खाना न खाएं। यदि कोविड के रोगियों को घर पर आॅक्सीजन लेने की जरूरत पड़ती है तो उसके मास्क को तो ढंग से साफ करते ही रहें, गैस सिलेन्डर के साथ लगे ‘ह्यूमीडिफायर’ में जो पानी इस्तेमाल करें, वह डिस्टिल्ड या फिल्टर वाला हो। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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