प्रवीण सिन्हा
एक-दो विशेष मौकों को छोड़ याद नहीं आता कि भारत के किसी शीर्षस्थ राजनेता ने भारतीय खेलों में इतनी गहरी रुचि दिखाई हो या फिर ओलंपिक जैसे महाकुंभ में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने का इतना ईमानदार प्रयास किया हो। लेकिन इस बार टोक्यो ओलंपिक खेलों के शुभारंभ से पहले से लेकर अंतिम दिन तक प्रधानमंत्री ने जिस तरह खिलाड़ियों के साथ संपर्क बनाए रखा वह खेलप्रेमियों को भाव-विभोर कर गया
नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पहला और वह भी स्वर्ण पदक जीत इतिहास रचा। ओलंपिक खेलों में भारतीय एथलेटिक्स की उपलब्धियों की जब भी चर्चाएं होंगी, नीरज को सबसे पहले याद किया जाएगा। कुछ ऐसा ही सुंदर उदाहरण पेश किया भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। नीरज चोपड़ा सहित तमाम प्रतिभाशाली खिलाड़ियों ने जब-जब टोक्यो ओलंपिक में देश का मान बढ़ाया, तब-तब देश के प्रधानमंत्री ने उनका हौसला बढ़ाया। देश का मान बढ़ाने पर उन्हें बधाई दी, खेल महाशक्ति बनने के लिए प्रेरित किया और जो खिलाड़ी या टीम पदक के करीब आकर भी उससे चूक गए उन्हें भी बधाई दी, उनका भी मनोबल बढ़ाया। इस अद्वितीय परंपरा को भविष्य में भी कोई और शीर्ष राजनेता आगे बढ़ाएगा या नहीं, यह बता पाना मुश्किल है। लेकिन इसमें कोई शंका नहीं है कि इस अद्भुत परंपरा की शुरुआत नरेन्द्र मोदी ने की है। ओलंपिक खेलों के इतिहास में भारतीय एथलीटों ने टोक्यो में जैसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर भारतीय खेल जगत को एक नई दिशा दी है, ठीक उसी तरह मोदी जी ने देश के खिलाड़ियों के साथ भावनात्मक लगाव का अप्रतिम उदाहरण पेश किया है।
भारतीय खिलाड़ी हुए भावविभोर
एक-दो विशेष मौकों को छोड़ याद नहीं आता कि भारत के किसी शीर्षस्थ राजनेता ने भारतीय खेलों में इतनी गहरी रुचि दिखाई हो या फिर ओलंपिक जैसे महाकुंभ में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने का इतना ईमानदार प्रयास किया हो। टोक्यो ओलंपिक से पहले यह खिलाड़ियों का दुर्भाग्य रहा। लेकिन इस बार टोक्यो ओलंपिक खेलों के शुभारंभ से पहले से लेकर अंतिम दिन तक प्रधानमंत्री ने जिस तरह खिलाड़ियों के साथ संपर्क बनाए रखा, उनका अतिप्रिय व्यवहार भारतीय खिलाड़ियों से लेकर तमाम खेलप्रेमियों को भाव-विभोर कर गया।
नए भारत का नायाब उदाहरण
भीषण आर्थिक तंगी व विपरीत परिस्थितियों से पार पाते हुए ओलंपिक पोडियम तक का सफर तय करने वाली मीराबाई चानू हो या धान के खेतों में बुआई करने वाली लवलीना बोर्गोहेन, सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी उपलब्धियों पर बधाई देने वालों में या गुणगान करने वालों में सबसे पहले देश के प्रधानमंत्री मोदी होंगे। इसी तरह टोक्यो ओलंपिक के पदकवीर रवि दहिया, पी वी सिंधू और बजरंग पूनिया को अपनी प्रतिभा के अनुरूप पदक न मिल पाने के बावजूद प्रधानमंत्री ने उन्हें बधाई देने में और उज्ज्वल भविष्य की ओर देखने के लिए प्रेरित करने में सबसे आगे रहे। ऐसे वाक्ये कभी-कभी देखने को मिलते हैं। स्वर्णिम दिनों की ओर लौटती भारतीय पुरुष हॉकी टीम और नीरज चोपड़ा के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठा लिया। इन सबसे भी बड़ा भावुक पल तब आया जब ओलंपिक में पहली बार सेमीफाइनल में पहुंचने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम जब कांस्य पदक का मुकाबला हारकर बुरी तरह से निराश थी तो मोदी जी उन्हें अपने बच्चे की तरह ढांढस बंधाते दिखे। कप्तान रानी रामपाल सहित सभी भारतीय खिलाड़ी एक ओर सुबक रही थीं तो प्रधानमंत्री उन्हें बता रहे थे कि कैसे शीर्ष पर जाने की ओर उन्होंने कदम बढ़ाए हैं। प्रधानमंत्री ने उन्हें आभास कराया कि पदक जीत न पाने के बावजूद उन्होंने विश्व चैंपियन व ओलंपिक चैंपियन टीमों को धूल चटाई है। उन्हें बताया कि यह दुखी होने का नहीं, दमदार कदम आगे बढ़ाने की शुरुआत पर जश्न मनाने का समय है। कमोबेश ऐसे ही उत्साहवर्धक संदेश प्रधानमंत्री ने कांस्य पदक से चूक गए पहलवान दीपक पूनिया और महिला गोल्फर अदिति अशोक को भी दिए जो पदक भले ही न जीत पाए पर खेलप्रेमियों का दिल जीतने में जरूर सफल रहे। यह एक नए भारत, नए भारतीय खेल जगत की तस्वीर है जिसमें अब हमारे खिलाड़ी अपने शीर्षस्थ राजनेता के प्रोत्साहन के बल पर ओलंपिक महाकुंभ में शीर्षस्थ खिलाड़ियों की कतार में खड़े होने का दम भरते हैं और साबित भी करके दिखाते हैं।
कहां गुम हो गए राहुल गांधी !
जब पूरे देश में ओलंपिक खेलों में भारतीय दल के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर उत्सव का सा माहौल बन रहा हो और खिलाड़ियो को बधाई देने वालों का तांता लगा हो, उस बीच सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी की चुप्पी आश्चर्य में डालती है। राहुल गांधी एक सजग विपक्षी नेता की भूमिका निभाते हुए सोशल मीडिया में कई छोटे-मोटे मुद्दों पर प्रधानमंत्री या भाजपा की आलोचना करते रहते हैं। किसी की प्रशंसा में उनकी प्रतिक्रिया कम ही आती है। लेकिन जब ओलंपिक खेलों के दौरान और उसके बाद देश के उज्ज्वल खेल भविष्य को लेकर जब सभी सोशल मीडिया पर सक्रिय हों तो उतनी ही खुशी संभवतः राहुल गांधी को भी हुई होगी। किसी पार्टी विशेष की सराहना करने की तो यहां बात भी नहीं है। खिलाड़ी एक राष्ट्रनायक के रूप में उभरे हैं। उन्होंने तमाम त्याग और समर्पण के बल पर ओलंपिक में पदक जीते हैं तो कम से कम उनके सम्मान में एक सजग राजनेता राहुल गांधी की प्रतिक्रिया तो बनती ही है।
सोशल मीडिया में एक चर्चा भी इन दिनों जोरों पर है कि जब से भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम कर दिया गया है तब से भारतीय खेल के दिन भी बदल गए। हो सकता है देशवासियों की इस राय से राहुल गांधी सहमत न हों। उन्हें अब खेल जगत से ही वितृष्णा हो गयी हो। लेकिन राहुल गांधी को यह नहीं भूलना चाहिए कि ज्यादातर विदेशी खिलाड़ी गांधी परिवार को ‘महान खिलाड़ियों का परिवार’ मानते हैं क्योंकि वे भारत के जिस कोने में भी खेलने जाते हैं वहां स्टेडियमों के नाम ज्यादातर जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी स्टेडियम ही होते हैं। खेल और खिलाड़ियों के लिए जिस परिवार ने इतना कुछ अच्छा किया है, कम से कम परिवार की उस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर न सही, सोशल मीडिया पर ही बधाई तो दे ही सकते थे।
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