प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार सुबह दस बजे देश को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने स्वदेशी पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें हर छोटी से छोटी चीज, जो भारत में बनी हो Made in India हो, जिसे बनाने में किसी भारतवासी का पसीना बहा हो, उसे खरीदने पर जोर देना चाहिए। जैसे स्वच्छ भारत अभियान, एक जनआंदोलन है, वैसे ही भारत में बनी चीज खरीदना, भारतीयों द्वारा बनाई चीज खरीदना, वोकल फॉर लोकल Vocal for Local होना, ये हमें व्यवहार में लाना ही होगा। विशेषज्ञ और देश-विदेश की कई एजेंसियां भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत सकारात्मक हैं। आज भारतीय कंपनियों में न सिर्फ रिकॉर्ड निवेश हो रहा बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी बन रहे हैं। स्टार्टअप में रिकॉर्ड निवेश के साथ ही रिकॉर्ड स्टार्टअप और यूनीकॉर्न बन रहे हैं।
पूरा टीकाकरण कार्यक्रम विज्ञान की कोख में जन्मा
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का पूरा वैक्सीनेशन प्रोग्राम विज्ञान की कोख में जन्मा है। वैज्ञानिक आधारों पर पनपा है और वैज्ञानिक तरीकों से चारों दिशाओं में पहुंचा है। यह हम सभी के लिए गर्व करने की बात है। कोरोना महामारी की शुरुआत में ये भी आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि भारत जैसे लोकतंत्र में इस महामारी से लड़ना बहुत मुश्किल होगा। भारत के लिए, भारत के लोगों के लिए ये भी कहा जा रहा था कि इतना संयम, इतना अनुशासन यहां कैसे चलेगा? लेकिन हमारे लिए लोकतन्त्र का मतलब है -‘सबका साथ’। सबको साथ लेकर देश ने ‘सबको वैक्सीन-मुफ्त वैक्सीन’ का अभियान शुरू किया। गरीब-अमीर, गांव-शहर, दूर-सुदूर, देश का एक ही मंत्र रहा कि अगर बीमारी भेदभाव नहीं करती, तो वैक्सीन में भी भेदभाव नहीं हो सकता। इसलिए ये सुनिश्चित किया गया कि वैक्सीनेशन अभियान पर वीआईपी कल्चर हावी न हो।
प्रधानमंत्री ने इस पर भी जोर दिया कि दुनिया के दूसरे बड़े देशों के लिए वैक्सीन पर रिसर्च करना, वैक्सीन खोजना, इसमें दशकों से उनकी विशेषज्ञता थी। भारत, अधिकतर इन देशों की बनाई वैक्सीन पर ही निर्भर रहता था।
जब 100 साल की सबसे बड़ी महामारी आई, तो भारत पर सवाल उठने लगे। क्या भारत इस वैश्विक महामारी से लड़ पाएगा? भारत दूसरे देशों से इतनी वैक्सीन खरीदने का पैसा कहां से लाएगा? भारत को वैक्सीन कब मिलेगी? भारत के लोगों को वैक्सीन मिलेगी भी या नहीं? क्या भारत इतने लोगों को टीका लगा पाएगा कि महामारी को फैलने से रोक सके? भांति-भांति के सवाल थे, लेकिन आज ये 100 करोड़ वैक्सीन डोज, हर सवाल का जवाब दे रही है। आज कई लोग भारत के वैक्सीनेशन प्रोग्राम की तुलना दुनिया के दूसरे देशों से कर रहे हैं। भारत ने जिस तेजी से 100 करोड़ का, 1 बिलियन का आंकड़ा पार किया, उसकी सराहना भी हो रही है। लेकिन, इस विश्लेषण में एक बात अक्सर छूट जाती है कि हमने ये शुरुआत कहां से की है।
प्रधानमंत्री ने इस पर भी जोर दिया कि दुनिया के दूसरे बड़े देशों के लिए वैक्सीन पर रिसर्च करना, वैक्सीन खोजना, इसमें दशकों से उनकी विशेषज्ञता थी। भारत, अधिकतर इन देशों की बनाई वैक्सीन पर ही निर्भर रहता था। कल 21 अक्टूबर को भारत ने 1 बिलियन, 100 करोड़ वैक्सीन डोज का कठिन, लेकिन असाधारण लक्ष्य प्राप्त किया है। इस उपलब्धि के पीछे 130 करोड़ देशवासियों की कर्तव्यशक्ति लगी है। इसलिए ये सफलता भारत की सफलता है, हर देशवासी की सफलता है।
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