मनोज ठाकुर
कुछ मुट्ठी भर लोग, जो राजनीति तौर पर न तो सक्षम है और न ही उनमें राजनीतिक समझ है। इनका न कोई सिद्धांत है, न ही विचार। बस एक उद्देश्य है, किसी तरह से सत्ता हासिल करना। इसी महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए आसान रास्ता चुना गया, जिसे नाम दिया गया किसान आंदोलन। कथित आंदोलन के स्वयंभू नेताओं की सियासी साजिश का यही सच है। ये सस्ती लोकप्रियता के लिए हरियाणा, पंजाब समेत राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक साल से गड़बड़ी फैलाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं और हर असफल प्रयास के बाद इनका सच सबके सामने आ गया है।
गुटों में बंटे कथित किसान नेता बैठक के नाम पर सिंघु बॉर्डर एकजुट हुए। घंटों चली बैठक में एक–दूसरे पर आरोप लगाते रहे। निशाने पर रहे भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत। बैठक के दौरान गुरनाम सिंह चढूनी और उनके गुर्गों ने इस दौरान जमकर हुड़दंग मचाया। मीडियाकर्मियों को धमका कर उनके कैमरे बंद करा दिए गए ताकि उनकी करतूत जनता के सामने न आने पाए। दरअसल, चढूनी हरियाणा की राजनीति में खुद को स्थापित करना चाहते हैं। लेकिन उनके गुर्गों को लगता है कि राकेश टिकैत उन पर भारी पड़ रहे हैं। इसलिए वे टिकैत के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। अपनी इसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए चढ़ूनी ने बैठक से पहले ही पंजाब की फतेहगढ़ साहिब सीट से सर्बजीत सिंह मक्खन को विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है, जबकि संयुक्त किसान मोर्चा इसके लिए तैयार नहीं है।
किसानों को वापस लाने योजना
कथित किसान नेताओं के मंसूबों का पता चलते ही किसान अपने-अपने घरों को लौटने लगे हैं। बैठक में नेता लगातार इस बात पर चिंता व्यक्त करते रहे कि बॉर्डर पर संख्या कम है। इसलिए तय हुआ कि बॉर्डर पर किसानों की संख्या बढ़ाई जाए। जानकारों का कहना है कि इसके लिए एक बार फिर से हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश में गड़बड़ी और अफवाह फैलाने की कोशिश हो सकती है। धर्म और जाति के नाम पर समाज में अशांति फैला कर किसानों की नजर में खुद को साबित करने के प्रयास किए जा सकते हैं। इसके लिए 26 नवंबर का दिन तय किया गया है। पिछले साल इसी दिन कथित आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
टूलकिट की तर्ज पर एजेंडा
सिंघु बॉर्डर पर जो बैठक हुई, उसका एजेंडा पहले से तैयार था। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि जहां-जहां विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां रैली कर लोगों तक ‘सच’ पहुंचाया जाए। इसी के तहत 26 नवंबर को राज्यों की राजधानियों में महापंचायतें बुलाने का फैसला लिया गया है। इस क्रम में 22 नवंबर को लखनऊ में भी पंचायत होनी है। नक्सलियों की तरह महापंचायतों में छात्रों, युवाओं, मजदूरों पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया गया। कथित नेताओं का इस बात पर खासतौर से जोर था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने पक्ष में किया जाए। इसके लिए कब-कब और क्या-क्या करना है, इसका समय निश्चित किया गया। यही नहीं, कथित आंदोलन में जिन लोगों की मौत हो गई है, उन्हें शहीद की तरह पेश कर लोगों की भावनाओं को भड़काने की रणनीति पर भी चर्चा हुई। दिवंगत लोगों को श्रद्धांजलि देने जैसे कार्यक्रम आयोजित करने पर जोर दिया गया।
सोशल मीडिया को हथियार बनाने पर जोर
आंदोलन को धार देने के लिए सोशल मीडिया को हथियार बनाने पर जोर दिया गया। राकेश टिकैत ने युवाओं से अपील की कि वे ज्यादा से ज्यादा संख्या में सोशल मीडिया पर सक्रिय रहें। लोगों को कथित आंदोलन से जोड़ने के लिए लगातार सोशल मीडिया पर वीडियो और संदेश वायरल करने की अपील की। यानी आने वाले दिनों में सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाई जा सकती है। इसके लिए फर्जी अकाउंट का सहारा भी लिया जा सकता है। 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस को दिल्ली में जिस तरह अराजक तत्वों ने उत्पात मचाया था, उसे फिर से दोहराया जा सकता है।
दिल्ली कूच के पीछे मंशा
बैठक में 29 नवंबर से संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली कूच की रणनीति बनाई गई। इसके लिए रोजाना 500 ट्रैक्टरों के दिल्ली पहुंचने पर जोर दिया गया। जानकारों का कहना है कि गणतंत्र दिवस की तरह ये आंदोलनजीवी विदेशों में बैठे अपने आकाओं को खुश करने के लिए सत्र के दौरान भी दिल्ली में गड़बड़ी फैलाने की कोशिश कर सकते हैं। ये कथित किसान नेता वही कर रहे हैं, जो इनके आका चाहते हैं। उनके इशारे पर ही इस तरह की रणनीति बनाई जाती है, जिससे समाज में ज्यादा से ज्यादा अशांति फैले, क्योंकि दिल्ली में गड़बड़ी होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी चर्चा होती है। इसलिए पिछले साल गणतंत्र दिवस का दिन चुना गया। अब संसद के सत्र के दौरान भी इसी तरह की अफरा-तफरी फैलाने पर जोर दिया जा रहा है।
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