ललित कौशिक
15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के बाद ज्यादातर देशी रियासतों या रजवाड़ों ने अपना विलय भारत में कर लिया। लेकिन तीन रियासतों के शासकों ने भारत के साथ विलय से इंकार कर दिया था। ये तीन शासक—जूनागढ़ के नवाब, हैदराबाद के निजाम और जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह थे। 16 मार्च, 1846 को ब्रिटिश कब्जे में आने के बाद जम्मू-कश्मीर एक देशी रियासत बन गया था। अंग्रेजों ने बाद में इसे गुलाब सिंह को दे दिया था, जो उस समय जम्मू-कश्मीर के राजा थे। भारत में विलय के समय जम्मू-कश्मीर के शासक रहे महाराजा हरि सिंह उन्हीं गुलाब सिंह के वंशज थे।
जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह के दरबारियों, सहयोगियों और मंत्री परिषद के वजीरों का पूरा जोर था कि राष्ट्रहित में जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में हो जाए। लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल और महात्मा गांधी जैसे महान व्यक्तित्वों ने भी प्रयास किया, परन्तु महाराजा तैयार नहीं हुए। वे नेहरू की सत्ता स्वीकार नहीं करना चाहते थे। राजनेताओं के प्रयास असफल हो चुके थे। समय की नाजुकता बढ़ती जा रही थी। उधर पाकिस्तान की फौज जम्मू-कश्मीर के द्वार पर पहुंच चुकी थी। ऐसी परिस्थिति में सरदार बल्लभ भाई पटेल ने व्यक्तिगत तौर पर मेहरचन्द महाजन द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरु जी को संदेश भेजकर आग्रह किया कि महाराजा हरिसिंह को जम्मू-कश्मीर की जनता की भलाई के लिए भारत में विलय के लिए तैयार करें। क्योंकि सरदार पटेल ये भली भांति जानते थे कि जम्मू-कश्मीर का भला भारत में विलय होने पर ही होगा। यह संदेश जैसे ही श्री गुरुजी को मिला, इस समस्या का समाधान करने तथा अपने राष्ट्रीय कर्तव्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द करते हुए विमान द्वारा नागपुर से दिल्ली और 17 अक्टूबर, 1947 को दिल्ली से श्रीनगर पहुंचे। वहां पंडित प्रेमनाथ डोगरा और मेहरचन्द महाजन के प्रयास से महाराज हरिसिंह से 18 अक्टूबर को मुलाकात हुई। गुरुजी की लंबी वार्ता हुई। इसके बाद गुरुजी के प्रयासों से महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर की जनता की भलाई के लिए तैयार हो गए। उन्हें अपने धर्म और राष्ट्र की रक्षा का महत्व समझ में आ गया। आपका और जम्मू-कश्मीर रियासत का भला इसी में है कि आप रियासत का हिन्दुस्थान में विलय कर दें। इस वार्ता के बाद महाराजा हरिसिंह ने विलय का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया और श्रीगुरुजी उन्हें आश्वस्त करते हुए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के स्वयंसेवकों को जम्मू-कश्मीर की रक्षा के लिए अपने रक्त की अंतिम बूंद तक बहाने का निर्देश देकर आए। इस तरह जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कराने में 'श्रीगुरुजी' का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए।
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