हितेश शंकर
भारत में अभी कोविड रोधी कितने टीके लगाए जा चुके हैं, इसका आंकड़ा आया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की 9 सितंबर की प्रेस वार्ता में बताया गया कि देश में अब तक लगाए गए कोविड-19-रोधी टीकों की कुल संख्या 72 करोड़ को पार कर गई है। जरा कल्पना कीजिए,उत्तर प्रदेश, जो आकार में दुनिया के चौथे देश जितना बैठता है, में ही 8 करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय बता चुका है कि भारत को 10 करोड़ टीकों के आंकड़े तक पहुंचने में 85 दिन, 20 करोड़ का आंकड़ा पार करने में 45 दिन और 30 करोड़ तक पहुंचने में 29 दिन लगे। टीकाकरण में देश को 30 करोड़ से 40 करोड़ तक पहुंचने में 24 दिन लगे और फिर 6 अगस्त को 50 करोड़ को पार करने में 20 दिन और लगे। देश को 60 करोड़ के आंकड़े को पार करने में 19 दिन लगे और 8 सितंबर को 70 करोड़ तक पहुंचने में केवल 13 दिन लगे।
दिसंबर, 2020 में जब हम सभी भारतीयों के टीकाकरण का संकल्प ले रहे थे, उस समय दुनिया के कई देश (और तो और अपने देश में भी कई गुट ) इस संकल्प पर संदेह जता रहे थे, खिल्ली उड़ा रहे थे। बीबीसी को ही लीजिए जो भारत में सभी के मास्क पहनने का नियम बनाने पर यह कार्टून बना रहा था कि भारत भूखे-नंगों का देश है। इन्हें आबादी के हिसाब से मास्क पहनाने में लोगों के कपड़े उतर जाएंगे। यह बात और थी कि कार्टून बनाने वाले बीबीसी का मातृदेश इंग्लैंड ही चंद दिनों बाद हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के लिए भारत के सामने हाथ पसारे खड़ा था।
कोविड से लड़ाई की इस यात्रा में अपने संकल्प पथ पर बढ़ने के लिए जो-जो उपाय मिलते गए, उन्हें अपनाते हुए और जो-जो प्रभावी नहीं थे, उन्हें प्रोटोकॉल में से हटाते हुए भारत ने वह रास्ता तय किया है जो दुनिया में किसी की भी कल्पना से परे था। इस रास्ते में हमारे सामने बाधाएं बहुत आईं-बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक अड़चनें थीं। पलायन था, महानगरों और परदेश में रह रहे लोग अपने घरों को लौटने के लिए हर जोखिम मोल ले रहे थे, वाहनों के अभाव में पैदल लंबी दूरियां नाप रहे थे, कुछ रास्ते की दुर्घटनाओं में मर रहे थे। राज्यों की राजनीति थी, लॉकडाउन लगाने के अधिकार पर राज्य विवाद कर रहे थे, कोविड से निपटने की व्यवस्थाओं पर आरोप-प्रत्यारोप थे।
अराजकतावादी उपद्रव था, भारत को संकल्प पथ से डिगाने के लिए अफवाहों का बाजार गर्म था। कोई सिरे से कोरोना के अस्तित्व को ही नकार रहा था और इसे सीएए विरोधी आंदोलन खत्म करने की सरकार की चाल बता रहा था तो कोई मृतकों की संख्या या अस्पतालों के अंदरखाने की मनगढंत कहानियां सुना कर भय और अविश्वास का वातावरण बना रहा था। संसाधनों का भी अभाव था। अचानक आई इस महामारी से निपटने के लिए जांच की मशीनों से लेकर दवाओं, आॅक्सीजन, डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ तक की कमी थी। परंतु इसके बाद भी हमने यह काम करके दिखाया और ऐसा करके दिखाया कि जो दिसंबर में हमारे संकल्प का मजाक उड़ा रहे थे, वे आज सितंबर आते-आते हमारी तरफ हैरानी से देख रहे हैं कि हमने यह कर कैसे लिया।
यहां एक बात और याद करनी चाहिए कि पहली लहर में जब अमेरिका कोविड को लेकर जूझ रहा था, तब संक्रमण बढ़ने के लिए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बहुत किरकिरी की गई। आज उस अमेरिका में ट्रंप के काल से ज्यादा मामले आ रहे हैं। ट्रंप के समय जो लोग अमेरिका में कोविड संक्रमण बढ़ने की बात पर चीख-चिल्लाहट मचाए हुए थे, वे आज खामोश हैं। यानी भारत जब महामारी से पूरी प्रतिबद्धता के साथ जूझ रहा था, तब विकसित देशों में वाम खेमा विशुद्ध राजनीति कर मानवता की हत्या कर रहा था।
पूरी दुनिया देख रही है कि भारत जो ठान ले, वह भारत कर सकता है। निश्चित ही इसका श्रेय नेतृत्व को है और नेतृत्व के साथ खड़े पूरे समाज को है। इस समाज ने राजनीतिक विभाजक रेखाओं को बुहारना शुरू कर दिया है। जब हम इस सदी की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे थे, तब कुछ लोग सामाजिक रूप से दरारें पैदा करना और इन्हें गहरा करना चाहते थे। परंतु समाज ने उन्हें धता बताते हुए इस राष्ट्रीय संकल्प को पूरा करने के लिए इन विभाजक तत्वों को ही चटका दिया। भारत में 72 करोड़ से अधिक वैक्सीन लगाया जाना मात्र एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह हमारे संकल्प की प्रतिध्वनि है, जिसका दायरा बढ़ता जा रहा है।
@hiteshshankar
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