एकलव्य ने अपना अंगूठा काटा था तो द्रोणाचार्य भी मात्र एक चुल्लू दूध के लिए तरसे थे। अपमानित भी किए गए थे। उस युग में एक अपराध के लिए ब्राह्मण को किसी शूद्र की अपेक्षा सोलह गुना अधिक दंड मिलता था। ऐसा माना जाता था कि ब्राह्मण ज्ञानी है और जान-बूझकर किया गया अपराध अज्ञानतावश किए गए अपराध से अधिक दंडनीय है।
इस लिहाज से तो महाभारत काल ब्राह्मण विरोधी हो गया और मनुस्मृति भी ब्राह्मण विरोधी ही हुई। उसी युग में एक मछुआरिन की संतान वेदव्यास ने महाभारत और त्रेतायुग में वाल्मीकि ने रामायण लिखी थी। जब एकलव्य की जाति बताते हो तो क्षत्रिय भीम की पत्नी हिडिम्बा की जाति भी बता दो और यह भी बता दो कि उसी हिडिम्बा के पोते खाटू श्याम जी को साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण की तरह क्यों पूजा जाता है?
न्याय-अन्याय हर युग में होते हैं और होते रहेंगे, अहंकार भी टकराएंगे। यह घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं, पर उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण है इनको जातिगत रंग देकर उस पर विभाजन की राजनीति करके राष्ट्र को कमजोर करना। यदि किसी ने बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का अपमान किया तो किसी सवर्ण ने ही उनको पढ़ाया भी था। किसी सवर्ण ने अपना सरनेम आंबेडकर दिया, तो किसी ने चुनाव हारने पर राज्यसभा भी पहुंचाया। किसी एक घटना को अपने स्वार्थ के लिए बार-बार उछालना और बाकी घटनाओं पर मिट्टी डालना कौन-सा चिंतन है?
सवर्ण क्षत्रिय नंद वंश का समूल नाश कर चंद्रगुप्त नाम के शूद्र पुत्र को चक्रवर्ती सम्राट बनाने वाला चाणक्य कौटिल्य नाम का ब्राह्मण ही था। यह दलित चिंतन नहीं है। यह केवल राष्ट्र द्रोहियों द्वारा थोपा हुआ दोगला चिंतन है, जो बंटवारे की राजनीति करते हैं। वर्ग विशेष के बहकावे में आकर आज इनके ही कुछ अनुयायी अपने सवर्ण कहे जाने वाले हिंदू भाइयों को दुश्मन समझ रहे हैं।
सभी हिन्दू भाई जात-पात मिटाकर एक रहें। देश को आपकी जरूरत है। देश के साथ रहें। जय हिन्द!
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