अरुण कुमार सिंह
पार्क के एक हिस्से में बनी मस्जिद
जमीन जिहादियों ने उस पार्क को भी नहीं छोड़ा, जहां महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों का मुकाबला करते हुए इस दुनिया से चल बसे थे। प्रयागराज के सिविल लाइंस इलाके में स्थित उस पार्क पर जिहादी तत्वों ने कब्जा कर मजार और मस्जिद बना दी है। हद तो यह हो गई कि अब वहां शव भी दफनाए जा रहे हैं।
गत एक जुलाई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रयागराज के चंद्रशेखर आजाद पार्क से अवैध मजार, मस्जिद और कब्रों को हटाने की याचिका पर नोटिस जारी किया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस पार्क में पिछले 10—15 साल के अंदर मस्जिद का एक ढांचा खड़ा कर दिया गया और एक मजार बना दी गई है। यही नहीं, पार्क में मुसलमान शवों को भी दफना रहे हैं। यह नोटिस कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद की खंडपीठ ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और उत्तर प्रदेश सरकार सहित सभी प्रतिवादियों को जारी किया है।
न्यायालय ने कहा कि पार्क में अतिक्रमण के मामले में 24 अप्रैल, 1987 को भी एक आदेश दिया गया था। इसके बावजूद पार्क अतिक्रमण का शिकार होता गया। अधिकारी क्या कर रहे हैं! न्यायालय ने उपरोक्त आदेश के संदर्भ में जानकारी मांगी तो नगर निगम के अधिवक्ता ने 'अरुण कुमार बनाम नगर महापालिका' में पारित आदेश को प्रभावी करने की कार्य—योजना के संदर्भ में निर्देश प्राप्त करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। इस पर न्यायालय ने उन्हें समय प्रदान करते हुए अगली सुनवाई के लिए 19 जुलाई की तारीख तय की है।
उल्लेखनीय है कि यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र सिंह बिशेन ने लगाई है। एक जुलाई को आनलाइन हुई बहस में याचिकाकर्ता की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरि शंकर जैन और राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल प्रस्तुत हुए थे।
बता दें कि पार्क में हो रहे अतिक्रमण को देखते हुए 1987 में एक याचिका दायर हुई थी। उसमें पार्क में एक मंदिर, संगीत अकादमी और कुछ अन्य सरकारी कार्यालयों के होने की बात कही गई थी। उस याचिका में किसी मस्जिद या मजार की चर्चा नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि पूरा पार्क अतिक्रमण—मुक्त हो। इसके बावजूद इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसका फायदा वहां के मुसलमानों ने उठाया। कहा जाता है कि पहले एक मजार बनाई गई। फिर मस्जिद का ढांचा खड़ा किया गया। इसके बाद तो पार्क को कब्रिस्तान बना दिया गया। वहां शवों को दफनाया जाने लगा है।
बता दें कि इसी पार्क में महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद ने अंतिम सांस ली थी। 27 फरवरी, 1931 को अंग्रेजों से घिर जाने पर उन्होंने खुद ही अपने को गोली मार ली थी। उस समय इस पार्क को अल्फ्रेड पार्क कहा जाता था। अल्फ्रेड एक अंग्रेज अधिकारी था। 1870 में वह इलाहाबाद के दौरे पर आया था। उसी की याद में 133 एकड़ में यह पार्क बनाया गया था। स्वतंत्रता मिलने के बाद इस पार्क का नाम अमर शहीद चंद्रशेखर पार्क किया गया था। इतने महान स्वतंत्रता सेनानी से जुड़े इस पार्क पर अतिक्रमण होना कोई छोटी—मोटी बात नहीं है। एक साजिश के तह एक वर्ग ने इस पार्क पर कब्जा किया और जिन लोगों पर इस पार्क पर अतिक्रमण नहीं होने देने की जिम्मेदारी थी, वे लोग अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर चुप रहे। राजनीतिक आका ऐसा इसलिए करते हैं कि उनका वोट बैंक बना रहे। इसी का फायदा जमीन जिहादियों ने उठाया है।
याचिकाकर्ता जितेंद्र सिंह कहते हैं, ''पार्क में पाच रु का टिकट लेने के बाद ही प्रवेश मिलता है। इसके बावजूद वहां शव कैसे पहुंच रहे हैं, मजारें कैसे बन रही हैं! इसका मतलब साफ है कि कुछ तत्व ऐसे हैं, जो पार्क पर कब्जा करने के खेल में शामिल हैं।''
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