बीआरआई परियोजना में काम कर रहे नौ चीनियों की बम विस्फोट में मौत के बाद से पाकिस्तान से नाराज चल रहे चीन को मनाने की इमरान खान की यह कोशिश कितनी कामयाब होगी, इसे लेकर विशेषज्ञों को संदेह है
आखिरकार पाकिस्तान ने बेल्ट एंड रोड परियोजना का प्रमुख बदल दिया है। अब पाकिस्तान की तरफ से इस परियोजना की कमान फौजी जनरल सलीम बाजवा की बजाय खालिद मंसूर के हाथ में है। पाकिस्तान के जानकार इसे पाकिस्तान की चीन को खुश करने की एक चाल बता रहे हैं। चीन पाकिस्तान से तबसे बेहद नाराज है जब इस बीआरआई परियोजना पर काम कर रहे उसके नौ इंजिनियर बम विस्फोट में मारे गए थे। साथ ही ड्रेगन परियोजना की धीमी चाल को लेकर भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) को लेकर पाकिस्तान को बड़ी उम्मीदें बंधी हैं कि इससे उसकी कंगाली दूर हो जाएगी, लेकिन जहां से यह गलियारा गुजर रहा है उस पीओजेके के लोग नाराज हैं क्योंकि पाकिस्तान उनका हक मार रहा है।
परियोजना प्रमुख बदलने के साथ ही, इस्लामी देश ने नए सिरे से चीनी कर्मचारियों की बेहतर सुरक्षा की गारंटी भी दी है। पीटीआई की रिपोर्ट है कि पाकिस्तान ने गत 8 अगस्त को चीन को साफ तौर पर संकेत दिया है कि वह 50 अरब डॉलर की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की इस परियोजना के साथ ही अन्य परियोजनाओं में काम करने वाले चीन के नागरिकों को पूरी सुरक्षा देगा। पाकिस्तान के दैनिक एक्सप्रेस ट्रिब्यून में रिपोर्ट है कि पाकिस्तान में चीन के राजदूत नोंग रॉन्ग ने हाल में गृहमंत्री शेख राशिद से बातचीत में चीन के नागरिकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था।
बताया जा रहा है कि नए प्रमुख बने मंसूर चीन के पैरोकार हैं और ऊर्जा क्षेत्र के माहिर हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान ने बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना के प्रमुख के नाते खालिद मंसूर को उससे जुड़े जरूरी कागजात भी सुपुर्द कर दिए हैं।
प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने आला अफसरों और मंत्रियों सहित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक को बीजिंग के दौरों पर भेजकर रिश्तों में आ रही खटास को दूर करने की कसरत की थी। बताते हैं, पाकिस्तान के घुटनों पर आने के बाद बीजिंग थोड़ा नरम पड़ा है और शायद उसी के इशारे पर बाजवा की जगह मंसूर को लाया गया है।
एएनआइ की रिपोर्ट है कि खालिद मंसूर सिंध एग्रो कोल माइनिंग कंपनी और हब पावर कंपनी लिमिटेड के वरिष्ठ अफसरों में से रहे हैं। उन्हें ऊर्जा क्षेत्र की अनेक कंपनियों में बड़े पदों पर काम करने का अनुभव है। मंसूर चीन के हितों के समर्थक माने जातेे हैं इसलिए, बताते हैं, बीजिंग ने भी मंसूर की नियुक्ति पर कोई आपत्ति नहीं जताई है। लेकिन फिलहाल, बीजिंग की प्राथमिकता पाकिस्तान में इस परियोजना में लगे अपने नागरिकों की सुरक्षा पुख्ता करना है। वह अब कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता। यही कारण है कि पिछले दिनों उसने पाकिस्तान से अपनी नाराजगी को खुलेआम जाहिर किया था। पाकिस्तान पर दबाव बना था कि अगर वह बीआरआई को लेकर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं करता तो संभवत: परियोजना से उसका पत्ता कट सकता है।
प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने आला अफसरों और मंत्रियों सहित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक को बीजिंग के दौरों पर भेजकर रिश्तों में आ रही खटास को दूर करने की कसरत की थी। बताते हैं, पाकिस्तान के घुटनों पर आने के बाद बीजिंग थोड़ा नरम पड़ा है और शायद उसी के इशारे पर बाजवा की जगह मंसूर को लाया गया है।
लेकिन, माना जा रहा है कि पाकिस्तान में लंबे समय से जारी अस्थिरता, बेरोजगारी और कंगाली की वजह से वह इस परियोजना को लेकर पूुरी तरह आश्वस्त नहीं हो सकता।
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