पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में हरियाणा सिविल सेवा परीक्षा में उर्दू को शामिल नहीं करने के खिलाफ याचिका। नूंह के एक याची ने मुख्य परीक्षा में उर्दू को शामिल करने की मांग की है।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सिविल सेवा (कार्यकारी और संबद्ध सेवाओं) प्रतियोगी परीक्षा से उर्दू को बाहर करने पर हरियाणा सरकार और हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) को नोटिस जारी किया है। एचपीएससी परीक्षा में वैकल्पिक विषयों के रूप में केवल हिंदी, पंजाबी और संस्कृत को ही शामिल किया गया है, उर्दू को नहीं।
हरियाणा के नूंह जिले के मोहम्मद इमरान ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है। याची का तर्क है कि संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत उर्दू को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। लेकिन एपीएससी में इसे शामिल नहीं किया गया है। याची ने न्यायालय से हरियाणा सरकार को 26 फरवरी, 2021 को विज्ञापित एचसीएस की समूह-अ और ब की मुख्य परीक्षा के लिए उर्दू को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल करने के निर्देश देने की मांग की मांग की है। इस पर न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने हरियाणा के मुख्य सचिव और एचपीएससी को नोटिस जारी कर 9 सितंबर तक जवाब देने को कहा है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि उर्दू को वैकल्पिक परीक्षा के रूप में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि देश में उर्दू बोलने वालों की तादाद सबसे अधिक है। यहां तक कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) भी निर्धारित करता है कि अखिल भारतीय सिविल सेवा परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले उम्मीदवार जो उर्दू में कुशल हैं और जिन्होंने अपने पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में या अपनी मातृभाषा के रूप में इसकी पढ़ाई की है, वे उर्दू को एक वैकल्पिक विषय के रूप में ले सकते हैं।
लेकिन एचपीएससी ने उर्दू में पारंगत उम्मीदवारों या जिन्होंने उर्दू को अपनी मातृभाषा के रूप में सीखा है, को प्रतिबंधित करके एचसीएस में नियुक्ति के लिए बहुत ही अजीब प्रक्रिया अपनाई है। मुख्य परीक्षा सूची में उर्दू को शामिल नहीं किया गया है। इससे उर्दू जानने वाले उम्मीदवारों का भविष्य दांव पर लग गया है।
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