एक मंदिर को लाउडस्पीकर भेंट करते संस्था के कार्यकर्ता और कुछ अन्य समाजसेवी
गुजरात के वडोदरा शहर में 'मिशन रामसेतु' नामक एक संस्था मंदिरों को लाउडस्पीकर भेंट कर रही है, ताकि उनके जरिए सुबह—शाम मोहल्लों में धार्मिक वातावरण बनाया जा सके। संस्था का तर्क है कि कोरोना के कारण समाज में जो निराशा फैली है, उसे धार्मिक वातावरण के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है।
कोरोना काल में भक्त मंदिर तक नहीं जा पा रहे हैं। इस कारण मंदिर में होने वाली धार्मिक गतिविधियों को भक्तों तक पहुंचाने के लिए गुजरात के एक प्रमुख शहर वडोदरा में अनूठी पहल की गई है। इसके अंतर्गत मंदिरों को लाउडस्पीकर दिए जा रहे हैं और उनसे आग्रह किया जा रहा है कि मंदिर में जब भी कोई अनुष्ठान हो उसमें लाउडस्पीकर का इस्तेमाल अवश्य करें, ताकि भक्तों को उसकी आवाज सुनाई दे। यह पहल 'मिशन रामसेतु' नामक एक संस्था ने की है। एक सप्ताह के अंदर संस्था की ओर से वडोदरा के 108 मंदिरों को लाउडस्पीकर भेंट किए गए हैं। 'मिशन रामसेतु' के अध्यक्ष दीप अग्रवाल ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण लगभग डेढ़ साल से मंदिर और अन्य धार्मिक संस्थान बंद हैं।
इस कारण इनमें न तो भक्त आ पा रहे हैं और न ही कोई अनुष्ठान हो पा रहा है। और यदि किसी मंदिर में कोरोना के नियमों का पालन करते हुए कोई अनुष्ठान होता है भी है तो उसका लाभ भक्त नहीं उठा पाते हैं। इसलिए 'मिशन रामसेतु' ने सभी मंदिरों को लाउडस्पीकर देने का अभियान शुरू किया है। जिस भी मंदिर को लाउडस्पीकर दिया जाता है, उससे आग्रह किया जाता है कि प्रात: एक घंटा और और सायं को एक घंटा नियमित रूप से कोई भजन सुनाएं, ताकि मोहल्लों में एक आध्यात्मिक वातावरण बने। इस वातावरण से लोगों को महामारी के बाद फैली निराशा से निकलने में मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी बताया कि अब तक वडोदरा के 200 से अधिक मंदिरों की ओर से लाउडस्पीकर मांगे गए हैं। संस्था पहले हनुमान जी और भोले बाबा के मंदिरों को लाउडस्पीकर दे रही है।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 'मिशन रामसेतु' का गठन वडोदरा के कुछ ऐसे युवाओं ने किया है, जो अलग—अलग पेशे से जुड़े हैं। इनमें कोई सीए है, तो कोई वकील या फिर डॉक्टर। इन युवाओं ने अप्रैल और मई महीने में कोरोना पीड़ितों तक खाना पहुंचाने का काम किया था। दीप अग्रवाल ने बताया कि सभी युवा रात ढाई बजे ही जगते थे और कोरोना पीड़ितों के लिए खाना बनाते थे। खाना तैयार होने के बाद उसे बांटने के लिए भी जाते थे। प्रतिदिन लगभग 500 लोगों को भोजन दिया जाता था।
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